इस साल फ़रवरी महीने में बिहार विधानमंडल का बजट सत्र शुरू होने से पहले मैंने जेडीयू के एक प्रवक्ता से पूछा था कि क्या महिलाओं के लिए नीतीश सरकार कोई बड़ी घोषणा कर सकती है?
इस सवाल पर जवाब आया, "हमारे नेता (नीतीश) नीतियों पर यकीन रखते हैं, रेवड़ियां बांटने में नहीं."
लेकिन कुछ महीने बीतने के बाद बिहार में साल 2005 से लगातार सत्ता में रही नीतीश सरकार ने अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया.
दो दशकों से बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार का ये पहला चुनाव है जब वो लगातार ऐसी घोषणाएं कर रहे हैं जिन्हें चुनावी 'रेवड़ी' या 'फ़्रीबीज़' बताया जा रहा है.
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नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इसे 'चुनावी रिश्वत' बताया है.
उन्होंने कहा, "डबल इंजन की सरकार डबल रफ़्तार से हारने जा रही है. इसलिए जनता को चुनावी रिश्वत दी जा रही है. मुख्यमंत्री बताएं कि इतनी घोषणाओं के लिए पैसा लाएंगे कहां से?"
तेजस्वी का ये सवाल तीन संदर्भों में महत्वपूर्ण है. पहला तो इसकी टाइमिंग यानी चुनाव से ठीक पहले, खुद नीतीश कुमार की पॉलिटिक्स जिसके चलते उन्हें अतीत में 'सुशासन बाबू' का टैग मिला और तीसरा राज्य की अर्थव्यवस्था के आईने में.
बता दें कि नीति आयोग ने साल 2025 में 18 बड़े राज्यों का राजकोषीय स्वास्थ्य सूचकांक जारी किया था, जिसमें बिहार 13वें नंबर पर है. ये सूचकांक इन राज्यों के साल 2023 के वित्तीय परफॉर्मेंस पर आधारित है.
इन 18 राज्यों में बिहार राजस्व जुटाने में सबसे फिसड्डी है. वहीं, दूसरी तरफ़ राज्य की आय और ख़र्चों में अंतर भी बहुत ज़्यादा है.
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बिहार सरकार ने 21 जून से अक्तूबर के पहले हफ़्ते तक कम से कम 15 ऐसी घोषणाएं की हैं जिसके जरिए महिलाओं, बुजुर्गों से लेकर समाज के हर वर्ग ख़ास तौर पर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को साधने की कोशिश की गई है.
पहले नज़र डालते है सरकार की कुछ महत्वपूर्ण घोषणाओं पर –
- मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना जिसके तहत आवेदन करने वाली महिला को अपना रोजगार शुरू करने के लिए पहली किश्त के तौर पर 10 हज़ार रुपये मिलेंगे. 6 माह बाद इसकी समीक्षा होगी और 2 लाख रुपये की अतिरिक्त सहायता मिलेगी. जीविका दीदीयों को मिलने वाली इस सहायता में सितंबर के अंत तक 1 करोड़ 11 लाख 58 हज़ार 840 महिलाओं ने इसके लिए आवेदन किया है. महिलाओं को पहली किश्त की राशि भी मिली है.
- महिलाओं, दिव्यांगों और बुजुर्गों को मिलने वाली पेंशन 400 से बढ़ाकर 1100 रुपये कर दी.
- घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट तक बिजली मुफ़्त.
- आशा, आंगनबाड़ी, ममता, रसोइयों, विकास मित्र, शिक्षा सेवक सहित कई स्कीम वर्कर्स का मानदेय बढ़ाया गया.
- बेरोजगार ग्रेजुएट नौजवानों को 1 हज़ार रुपये प्रति माह दो साल तक मिलेंगे.
- नए रजिस्टर्ड वकीलों को 5 हज़ार रुपये का हर महीने स्टाइपेंड.
- स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना के तहत मिलने वाला कर्ज़ ब्याज से मुक्त.
- राज्य की सभी परीक्षाओं में सिर्फ़ प्रारंभिक परीक्षा में ही 100 रुपये का शुल्क लगेगा. मुख्य परीक्षा में कोई शुल्क नहीं लगेगा.
- वरिष्ठ और आर्थिक रूप से कमजोर कलाकारों के लिए हर महीने 3 हज़ार रुपये की पेंशन.
बिहार का बजट
किसी भी तरह की योजना या घोषणा में सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है कि घोषणा पर ख़र्च होने वाला पैसा कहां से आएगा?
राज्य का साल 2025-26 का बजट 3 लाख 16 हज़ार करोड़ रुपये का था. मार्च में बजट की घोषणा के बाद जुलाई में मॉनसून सत्र में पेश हुए पहले अनुपूरक (सप्लीमेंटरी) बजट में 58 हज़ार करोड़ और आवंटित किए गए.
अनुपूरक बजट यानी वो बजट जो सरकार तब पेश करती है जब वित्तीय बजट में तय धनराशि को बढ़ाना होता है या किसी नई ज़रूरत को पूरा करने के लिए धनराशि का प्रावधान करना होता है.
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, राज्य में साल 2024-25 का कुल बकाया 3,48,370 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है.
साथ ही, साल 2025-26 में 55,737 करोड़ रुपये का ऋण लिया जाना प्रस्तावित है. यानी इस स्थिति में राज्य पर कुल बकाया 4,04,107 करोड़ रुपये का होगा. इस कर्ज़ का ब्याज इस वित्तीय वर्ष में 23,013 करोड़ रुपये है यानी रोज़ाना 63 करोड़ रुपये.
आर्थिक सामाजिक मसलों पर बीते दो दशक से निकल रही पत्रिका तलाश की संपादक और अर्थशास्त्री मीरा दत्त बीबीसी से कहती हैं, "किसी भी राज्य के लिए कर्ज़ का भार बढ़ता जाना अच्छा नहीं है क्योंकि जब आप आईएमएफ़, वर्ल्ड बैंक या किसी अन्य मार्केट फ़ोर्स से कर्ज़ लेते हैं तो उनकी शर्तें माननी पड़ती हैं."
"ये शर्तें प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और आर्थिक शोषण की तरफ़ ले जाने वाली होती हैं. और इस पूरे चक्र में सबसे ज़्यादा महिलाओं का शोषण होता है. यानी आप महिलाओं को सशक्त करने की बात करते हैं लेकिन कर्ज़ का बोझ बढ़ाकर महिलाओं को ही सबसे ज़्यादा ख़तरे में डालते हैं."
राज्य की ऋण संरचना देखें तो ये दो तरह से ऋण लेता है. पहला आंतरिक जिसमें बाज़ार, रिज़र्व बैंक, बॉन्ड, वित्तीय संस्थाएं हैं. वहीं, दूसरे तरह से ऋण केंद्र सरकार से मिलते हैं जिसमें केंद्र प्रायोजित, राज्य संचालित योजनाओं के लिए ऋण मिलता है.
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नीतीश सरकार की ओर से लगातार हो रही इन घोषणाओं के बीच तेजस्वी यादव ने 'पैसा कहां से आएगा' वाला सवाल उठाया है.
तेजस्वी यादव ने हाल ही में प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा, "इस साल मई से सितंबर तक प्रधानमंत्री मोदी ने 1 लाख 15 हज़ार करोड़ रुपये की कई घोषणाएं की हैं. इसके अलावा दिसंबर से फ़रवरी तक चली प्रगति यात्रा में सीएम ने 50 हज़ार करोड़ रुपये की घोषणाएं कीं. इन सभी घोषणाओं का ख़र्च मिला दिया जाए तो 7 लाख 8 हज़ार 729 करोड़ रुपये राज्य को चाहिए. आख़िर ये पैसा आएगा कहां से, ये मुख्यमंत्री जी को बताना चाहिए."
तेजस्वी यादव ने आगे कहा, "सरकार ने महिलाओं को 10 हज़ार रुपये दिए हैं. नीतीश कुमार 20 साल से बिहार के मुख्यमंत्री हैं, इस लिहाज़ से उन्होंने एक साल में महिलाओं को 500 रुपये और एक दिन में 1 रुपया 38 पैसा दिया है. सरकार ये एक रुपये देकर हमारे बच्चों का वर्तमान और भविष्य ख़रीदना चाहती है."
राज्य सरकार अपने बजट 3 लाख 17 हज़ार करोड़ रुपये में से 2 लाख करोड़ से भी ज़्यादा राशि स्थापना और प्रतिबद्ध पर ख़र्च करेगी. स्थापना एवं प्रतिबद्ध का मतलब उन ख़र्चों से हैं जो किसी विभाग के संचालन के लिए ज़रूरी हैं यानी पेंशन, वेतन, भत्ता जैसे अनिवार्य ख़र्च. स्थापना एवं प्रतिबद्ध व्यय के अलावा स्कीम व्यय यानी योजनाओं पर ख़र्च होता है.
बिहार सरकार कुल व्यय में स्थापना पर 63.16 प्रतिशत और स्कीम पर 36.84 प्रतिशत ख़र्च करेगी.
आंकड़ा लोग कैसे जोड़ते हैं, ये मालूम नहीं: सम्राट चौधरी
तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और हाल ही में हुई घोषणाओं को लेकर कुल ख़र्च 7 लाख 8 हज़ार 729 करोड़ रुपये बताया है.
लेकिन राज्य के उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री सम्राट चौधरी ने एक निजी मीडिया हाउस के कॉन्क्लेव में इससे इनकार किया है.
उन्होंने कहा, "कोई किस तरह से आंकड़ा जोड़ रहा है, ये हमें मालूम नहीं. लेकिन हम 70 हज़ार करोड़ रुपये अपने संसाधन से जेनरेट करते हैं."
"आयकर, जीएसटी, केंद्र की सहायता से ये राशि 3 लाख करोड़ की हो जाती है और राज्य 20-30 हज़ार करोड़ लोन के तौर पर लेता है जिसका हम रीपेमेंट भी करते हैं."
जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार बीबीसी से कहते हैं, "जो योजनाएं घोषित हो रही हैं, वो हमारी सरकार के सात निश्चय पार्ट टू की निरंतरता है. हम जो पैसा ले रहे उसमें एफआरबीएम एक्ट (फ़िस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट) का पालन हो रहा है तो दिक्कत क्या है? हमारी सरकार ने मिश्रित अर्थव्यवस्था में सोशल रिफॉर्म्स लागू करने का सबसे अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है."
एफ़आरबीएम एक्ट सरकार को सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के एक निश्चित प्रतिशत से अधिक उधार नहीं लेने के लिए बाध्य करता है.

एनडीए गठबंधन इन घोषणाओं को लोक हित में बता रहा है, लेकिन ये सवाल अहम है कि क्या ये घोषणाएं लोगों के जीवन में परिवर्तन लाएंगी.
राज्य में कुल 2 करोड़ 76 लाख 68 हज़ार 930 परिवार हैं जिनमें से 94 लाख 42 हज़ार 786 परिवारों की मासिक आय 6 हज़ार रुपये से कम है. सिर्फ़ 10 लाख 79 हज़ार 466 ऐसे परिवार हैं जिनकी आय 50 हज़ार रुपये से ज़्यादा है.
अर्थशास्त्री विद्यार्थी विकास कहते हैं, "फ़्रीबीज़ अगर प्लान्ड करके किए जाएं तो फ़ायदा होगा. यानी जिनको हम पैसा दे रहे हैं तो उनका स्किल डेवलपमेंट ज़रूरी प्रक्रिया है. जैसा बांग्लादेश में हुआ."
"अगर बिना स्किल डेवलपमेंट के हम रुपये देते हैं तो वो कंज़्यूम हो जाता है और उसका अर्थव्यवस्था पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता. उल्टे एक तरह का कॉन्फ्लिक्ट टैक्सपेयर और वंचित समाज के बीच सोसाइटी में पैदा होता है."
उनके मुताबिक इस क़दम से लोगों के पास के पैसे तो ज़्यादा होंगे लेकिन इसकी अपनी सीमा भी है.
"फ़्रीबीज़ को भी दो तरह से देखना चाहिए. निगेटिव और पॉजिटिव. जैसे सरकार 15 हज़ार करोड़ बिजली कंपनियों को अनुदान दे रही थी, अब उसने 125 यूनिट बिजली मुफ़्त करके डायरेक्ट कंज्यूमर को दे दी. यानी अब लोगों के पास ज़्यादा पैसा है ख़ुद पर ख़र्च करने के लिए. लेकिन अगर सरकार के रोजगार के लिए दिए गए पैसों से लोगों के जीवन स्तर में परिवर्तन नहीं आता तो ये सरकार के इनवेस्टमेंट और लोगों के इनकम दोनों को ज़ीरो कर देगा."
वैसे नीतीश कुमार बीते 20 साल से राज्य के मुख्यमंत्री हैं. 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद तीन चुनावों से ठीक उनकी ओर से सारी घोषणाएं देखने को नहीं मिलीं.
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