नेपाल की राजधानी काठमांडू में आठ सितंबर, 2025 को हज़ारों किशोर और युवा सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन को जमा हुए. इन युवाओं को 'जेन ज़ी' भी कहा जाता है.
पहले तो इस जमावड़े में किसी उत्सव जैसा माहौल था.
युवा सड़क पर जुट रहे थे, संगीत बज रहा था. इन युवाओं में से कई तो स्कूल यूनिफॉर्म पहने हुए थे. ये सभी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ नारे लगा रहे थे.
लेकिन देखते-देखते उत्सव का ये माहौल हिंसा में बदल गया.
बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिएयहाँ क्लिककरें
इसके बाद दो दिनों तक चली राजनीतिक हिंसा में दर्जनों लोग मारे गए और कई घायल हो गए.
नेपाल के इतिहास की यह एक सबसे बड़ी हिंसक घटना थी. इस दौरान सरकारी इमारतों और निजी दुकानों में आग लगा दी गई. प्रधानमंत्री को इस्तीफ़ा देना पड़ा और नेपाल की सरकार गिर गई.
इस सप्ताह हम दुनिया जहान में यही जानने की कोशिश करेंगे कि क्या युवा नये नेपाल की दिशा तय कर सकते हैं?
तीन लोगों के पास ही रहा है प्रधानमंत्री का पद
Getty Images हिंसक घटनाओं के बाद सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है नेपाल एक हिंदू राष्ट्र हुआ करता था, जहां 1768 में राजशाही की स्थापना हुई थी. यहां राजशाही को ख़त्म करने के लिए माओवादियों ने दस साल तक गृह युद्ध लड़ा, जो साल 2006 में समाप्त हुआ.
फिर शांति समझौते के तहत माओवादी मुख्यधारा की राजनीति में आ गए. दो साल बाद नए संविधान का निर्माण करने के लिए निर्वाचित प्रतिनिधियों ने सदियों पुरानी राजशाही समाप्त करने का फ़ैसला किया.
ब्रिटेन की एडिनबरा यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशिया और अंतरराष्ट्रीय विकास विभाग के प्रमुख प्रोफ़ेसर जीवन शर्मा कहते हैं कि लंबे समय से तीन प्रधानमंत्री ही अदल-बदल कर नेपाल की सरकार चलाते रहे हैं.
वो बताते हैं, "2015 से अब तक नेपाल में कई सरकारें आयीं और गयीं. ये सभी गठबंधन सरकारें थीं और कोई भी सरकार लंबे समय तक नहीं टिक पाई. देश में कई राजनीतिक दल हैं लेकिन किसी भी दल के लिए अपने बल पर सरकार बनाना संभव नहीं रहा है."
हाल में सत्ता से हटाए गए कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली चार बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं.
माओइस्ट सेंटर पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी से अलग हो गई थी जिसके नेता प्रचंड भी तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं. नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा पांच कार्यकाल तक प्रधानमंत्री रहे.
प्रोफ़ेसर जीवन शर्मा कहते हैं कि प्रधानमंत्री पद घूम-फिर कर उन्हीं तीन लोगों के पास आता जाता रहा.
उनका कहना है, "राजनीतिक दलों ने देश के संसाधनों को विकसित करने पर ख़ास ध्यान नहीं दिया. गठबंधन सरकार के नेता अपना हित साधते रहे. मगर यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि नेपाल की अर्थव्यवस्था में काफ़ी सुधार भी हुआ है."
वो कहते हैं, "साल 1960 में नेपाल का सकल घरेलू उत्पाद केवल 50 करोड़ डॉलर था जो 1993 में बढ़कर 3.63 अरब डॉलर हो गया और 2023 में 42 अरब डॉलर तक पहुंच गया. प्रति व्यक्ति आय जो साल 1960 में 50 डॉलर थी, वो 2023 में 1400 डॉलर हो गयी. यानी आर्थिक तरक्की तो हुई है."
मगर प्रोफ़ेसर जीवन शर्मा ने यह भी कहा कि भारत, खाड़ी के देशों या जापान जैसे दूसरे देशों में काम करने वाले नेपाली श्रमिक अपने घर जो पैसे भेजते हैं वही नेपाल की आय का बड़ा ज़रिया है.
ये लोग विदेशों में अस्थायी प्रवासी श्रमिकों के तौर पर काम करते हैं. नेपाल के पिछले तीन प्रधानमंत्री सत्तर साल से अधिक आयु के रहे हैं जबकि देश की आबादी की औसत आयु 25 वर्ष है.
प्रोफ़ेसर जीवन शर्मा ने कहा, "अगर हमारे देश में सशक्त विपक्ष होता तो इस मुद्दे पर संसद में बहस हो सकती थी. चूंकि ऐसा नहीं था इसलिए युवाओं और अन्य लोगों के पास इस पर चर्चा करने के लिए केवल सोशल मीडिया का मंच ही था जहां लोग अपनी निराशा और विरोध प्रकट कर सकते थे."
- राजशाही, लोकतंत्र और उठापटक: साल 1768 से 2025 तक ऐसा रहा है नेपाल का इतिहास
- नेपाल में राष्ट्रपति की भूमिका को लेकर कैसी चर्चा हो रही है?
- नेपाल को नई दिशा देने के लिए युवा कितने हैं तैयार, देखिए ग्राउंड रिपोर्ट
आमतौर पर जेन ज़ी उस आयु वर्ग के लोगों को कहा जाता है जिनकी उम्र 13 से 28 साल के बीच हो.
प्रणय राणा पत्रकार और लेखक हैं जो 'कलम' पत्रिका के लिए लिखते हैं और विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत से उस पर नज़र रख रहे हैं.
वो कहते हैं, "जेन ज़ी की निराशा का मुख्य कारण भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद या नेपोटिज़म है, जिसके ख़िलाफ़ वो सोशल मीडिया पर आंदोलन चला रहे थे. सोशल मीडिया पर 'नेपो किड्स' और 'नेपो बेबीज़' हैशटैग के वीडियो और तस्वीरों को लाखों लोगों ने देखा."
"प्रभावशाली नेताओं के बच्चों पर भाई-भतीजावाद के आरोप लग रहे थे. जेन ज़ी ने यह फ़ोटो और वीडियो देखे और उन्हें लगा कि हमारे देश में जहां अधिकांश लोग ग़रीबी से जूझ रहे हैं वहां ऐसा नहीं होना चाहिए. ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए जिसमें राजनेताओं के बच्चे यूरोप में छुट्टियां मनाते दिख रहे थे."
वो आगे बताते हैं, "इनमें एक और फ़ोटो जो वायरल हो गया, उसमें एक स्थानीय राजनेता का बेटा लुई वितॉन बैग्स के पैकेट्स से क्रिसमस ट्री बनाता दिख रहा है. यह बैग इतने महंगे होते हैं कि आम आदमी ऐसा एक बैग भी ख़रीद नहीं सकता जबकि इस लड़के ने इन बैग्स के पैकेट्स से पूरा क्रिसमस ट्री बना दिया था."
विरोध प्रदर्शनों से पहले सरकार ने नेपाल में 26 सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स को बंद कर दिया.
प्रणय राणा कहते हैं कि सोशल मीडिया जेन ज़ी के लिए संपर्क और संवाद का प्रमुख ज़रिया था. लेकिन सरकार का कहना था कि सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स फ़ेक न्यूज़ और नुक़सान पहुंचाने वाली सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए सरकार के बनाए नए नियमों का पालन नहीं कर रहे थे.
प्रणय राणा का मानना है, "सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाया जाना विरोध प्रदर्शनों का मुख्य कारण नहीं था लेकिन उसने इस आग के भड़कने में चिंगारी का काम किया. सभी मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स को पूरी तरह बंद करने में समय लगता है."
प्रणय राणा ने कहा कि इन विरोध प्रदर्शनों का संचालन अनेक जगहों से हुआ. बेनामी इंस्टाग्राम और टिकटॉक अकाउंट्स के ज़रिए लोगों से काठमांडू की एक केंद्रीय जगह पर इकट्ठा होने की अपील की गई.
"उस दिन कम से कम 19 प्रदर्शनकारी मारे गए जिनमें से अधिकांश की उम्र तीस साल से कम थी. इस भयंकर त्रासदी से पूरा देश सन्न रह गया."
पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पों के बाद आठ तारीख़ को सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंध हटा दिए गए.
प्रणय राणा के अनुसार, प्रदर्शनकारियों के मारे जाने की प्रतिक्रिया में 9 सितंबर को दोबारा विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, जो हिंसक हो गए.
इसमें योजनाबद्ध तरीके से पुलिस स्टेशनों, राजनेताओं और उनसे जुड़े कारोबारियों और होटलों को आग लगा दी गई. केवल राजनेताओं ही नहीं बल्कि न्यायपालिका के सदस्यों के घरों को भी निशाना बनाया गया. दुकानों को लूटा गया.
दो दिनों तक चली हिंसा में 70 से अधिक लोग मारे गए. प्रधानमंत्री ने इस्तीफ़ा दे दिया और नेपाल की सरकार गिर गई.
प्रणय राणा ने कहा कि सरकार के गिरने के बाद उन्होंने कई लोगों से बात की जिनमें सभी आयु वर्ग के लोग शामिल थे और वो इन प्रदर्शनों के नतीजे से ख़ुश थे. बहुत से लोग हिंसा में हुई मौतों से दुखी थे.
प्रणय राणा कहते हैं, "जिस प्रकार राजनेताओं को भागना पड़ा और नए ईमानदार और अधिक काबिल युवा नेताओं के लिए जगह बनी, उससे नेपाल के लोग ख़ुश हैं और इसके लिए देश को जो कीमत चुकानी पड़ी उसके लिए वो तैयार दिखे."
मगर विरोध प्रदर्शनों के एक हफ़्ते बाद ही सत्ता से हटाए गए कई राजनेता दोबारा सामने आ गए.
प्रणय राणा ने कहा कि इन नेताओं ने विरोध प्रदर्शनों से सबक नहीं सीखा है, इस्तीफ़ा दे चुके प्रधानमंत्री की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के कुछ नेता कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री दोबारा लौट कर देश की बागडोर अपने हाथ में लेने वाले हैं. जिससे स्पष्ट दिखता है कि इन प्रदर्शनों के संदेश को उन्होंने स्वीकार नहीं किया है.
- नेपाल में हिंसक विद्रोह भड़काने वाले ये हैं पांच कारण
- नेपाल में हिंसक प्रदर्शन, संसद और कई मंत्रियों के घर फूंके, सेना ने प्रदर्शनकारियों को बातचीत के लिए बुलाया
- नेपाल के इस आंदोलन से क्या नया नेतृत्व पैदा होगा, ओली का क्या होगा और बालेन शाह की चर्चा क्यों
हरियाणा के ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय राजनीति की प्रोफ़ेसर श्रीराधा दत्ता कहती हैं कि नेपाल की घटनाओं को भारत में ध्यान से देखा जा रहा है, भारत और नेपाल के बीच सीमा एक हज़ार किलोमीटर से लंबी है और पांच भारतीय राज्य उससे सटे हैं.
उन्होंने कहा कि दोनों देशों के लोग सीमा के आर-पार आ जा सकते हैं, बड़ी संख्या में नेपाली लोग भारतीय सुरक्षा बलों में नौकरी करते रहे हैं और दोनों देशों के बीच राजनीतिक संवाद ज़्यादातर अच्छा रहा है.
वो कहती हैं, "दोनों देशों के संबंध में उतार चढ़ाव भी आए हैं. राजशाही के दौरान और उसके बाद भी दोनों देशों के बीच अच्छा संपर्क रहा है. साथ ही दोनों देशों का सामाजिक ताना-बाना एक दूसरे से जुड़ा हुआ है. सीमा पार शादियां होती रही हैं. नेपाली लोग पढ़ाई और इलाज के लिए भारत आते रहे हैं. दूसरी तरफ़ नेपाल में पिछले कई दशकों से सबसे अधिक पर्यटक भारत से आते रहे हैं."
दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध भी घनिष्ठ रहे हैं. नेपाल के कुल निर्यात का 60% हिस्सा भारत आता है जिसमें, सब्ज़ियां, लकड़ी, कपड़ा और मसाले शामिल हैं.
भारत से नेपाल को मशीनें, रोज़मर्रा के इस्तेमाल के सामान और ईंधन बेचा जाता है.
नेपाल का दूसरा पड़ोसी चीन है. प्रोफ़ेसर श्रीराधा दत्ता कहती हैं कि नेपाल चीन के साथ भी सहयोग करता रहा है. वह चीन के 2013 में शुरू किए गए महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का भी हिस्सा है.
इस प्रोजेक्ट के ज़रिए चीन दक्षिण एशिया और दुनिया के अन्य देशों के साथ नए व्यापार मार्ग विकसित करना चाहता है. इसलिए वो इसमें शामिल होने वाले देशों को विकास कार्यक्रमों के लिए कर्ज भी देता रहा है.
jgu.edu.in/jsia प्रोफ़ेसर श्रीराधा दत्ता ने कहा कि पिछले कुछ साल में नेपाल में कई राजनीतिक उतार चढ़ाव आए हैं जिसके चलते ऐसे कई प्रोजेक्ट्स फ़िलहाल स्थगित कर दिए गए हैं.
हालांकि इस दौरान नेपाल और चीन के बीच व्यापार बढ़ा है और कई नेपाली छात्र पढ़ाई के लिए चीन जा रहे हैं.
प्रोफ़ेसर श्रीराधा दत्ता का कहना है कि चीन दक्षिण एशियाई देशों को विकास कार्यक्रमों के लिए कर्ज दे तो रहा है मगर मालदीव और श्रीलंका जैसे कुछ देश कर्ज़ की किश्तें नहीं चुका पा रहे हैं.
उनके अनुसार, "इसलिए नेपाल के जेन ज़ी नेता इन परियोजनाओं पर काफ़ी सावधानी बरत कर ही फ़ैसला करेंगे. वो केवल ऐसी परियोजनाएं अपनाएंगे जिनसे मुख्य रूप से नेपाल को फ़ायदा हो."
प्रदर्शनों के बाद सरकार के गिरने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री और चीन के विदेश मंत्रालय ने नेपाल के साथ सहयोग जारी रखने का आश्वासन दिया.
प्रोफ़ेसर श्रीराधा दत्ता कहती हैं कि भारत और चीन नेपाल की आर्थिक स्थिरता और वहां युवाओं को बेहतर अवसर मुहैया कराने में मदद कर सकते हैं.
- नई पीढ़ी कैसे करती है डेटिंग? सिचुएशनशिप, ब्रेडक्रंबिंग से लेकर जानिए ऑर्बिटिंग तक
- नई पीढ़ी कैसे करती है डेटिंग? सिचुएशनशिप, ब्रेडक्रंबिंग से लेकर जानिए ऑर्बिटिंग तक
- नेपाल में कैसे जड़ें जमा रही है हिन्दुत्व की राजनीति, मुसलमानों पर कैसा असर?
sipa.columbia.edu तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर- क्या युवा नए नेपाल की दिशा तय कर सकते हैं?
चंद हफ़्तों में जेन ज़ी के आंदोलन ने राजनीतिक बदलाव ला दिया है. तीन व्यक्तियों के बीच प्रधानमंत्री पद को सौंपे जाने का सिलसिला ख़त्म हो गया है.
साथ ही यह आंदोलन भ्रष्टाचार, आर्थिक अवसरों के अभाव और राजनीतिक अस्थिरता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहा है. यह परिवर्तन टिकेगा या नहीं यह अभी कहना मुश्किल है.
हालांकि कुछ अच्छे संकेत ज़रूर हैं कि युवाओं की आकांक्षाओं को प्रमुखता से सामने रखा गया है.
जेन ज़ी आंदोलन ने साबित कर दिया है कि उसका उद्देश्य बदलाव लाना है ना कि सत्ता हथियाना. इस लिहाज़ से शायद उनका यह अभियान पूरा हो गया है.
अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय राजनीति की लेक्चरर डॉक्टर रूमेला सेन कहती हैं कि सामाजिक आंदोलन अक्सर परिवर्तन शुरू करते हैं मगर ज़रूरी नहीं है कि हमेशा वो देश को उस रास्ते पर ले जाने में सफल हों जो उसका मक़सद है. सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि चुनाव होने से पहले नेपाल में क्या होगा?
नेपाल की पूर्व चीफ़ जस्टिस सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है.
डॉक्टर रूमेला सेन कहती हैं, "उन्हें पारंपरिक चुनावों के तरीके से चुना नहीं गया है बल्कि उनकी नियुक्ति का फ़ैसला जेन ज़ी ने किया है. उनकी छवि धनी और प्रभावशाली लोगों के ख़िलाफ़ खड़े होने वाली जज की रही है जिसकी वजह से उन्हें यह पद सौंपा गया है. पद संभालते ही वो अस्पतालों में जा कर घायलों से मिलीं और उनके परिवारों का आर्थिक मदद दी."
Getty Images बीते दिनों नेपाल में हुई सर्वदलीय बैठक में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल हुए नेपाल में विरोध प्रदर्शनों के दौरान संसद सहित कई इमारतों को भारी नुक़सान भी पहुंचा है.
सुशीला कार्की ने उस हिंसा के दौरान हुई मौतों और नुक़सान की जांच के लिए जजों की एक समिति का गठन भी किया है. उन्होंने सरकार में मंत्रियों की नियुक्ति में भी बदलाव का संकेत दिया है.
डॉक्टर रूमेला सेन कहती हैं कि उन्होंने राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को नहीं बल्कि वकीलों, इंजीनियरों और आर्थिक विशेषज्ञों को मंत्री बनाया है.
देश के मौजूदा वित्त मंत्री ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा था और राजनीतिक दलों ने उन्हें ऐसा करने से रोकने की कोशिश की थी जिसके विरोध में उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था.
डॉक्टर रूमेला सेन के मुताबिक़, "अंतरिम सरकार में मंत्रियों के चयन में उनके भ्रष्टाचार विरोधी रुख को ध्यान में रखा गया है."
ख़ास बात यह है कि इस सरकार में जेन ज़ी यानी कम उम्र के युवा नहीं हैं.
डॉक्टर रूमेला सेन कहती हैं कि यह जेन ज़ी आंदोलनकारियों की परिपक्वता और विनम्रता का सबूत है कि उन्होंने अपने अनुभव और प्रशासन चलाने की जानकारी की कमी को ध्यान में रख कर ख़ुद को सरकार से बाहर रखा और यह संकेत दिया कि वो सत्ता के भूखे नहीं हैं.
वहीं अंतरिम सरकार को नेपाल के राष्ट्रपति और सेना की मान्यता की आवश्यकता थी.
डॉक्टर रूमेला सेन कहती हैं कि इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान सेना ने समझदारी से काम लिया जिसकी वजह से उसकी लोकप्रियता बढ़ी है.
"हालांकि किसी भी लोकतंत्र में सेना की ऐसी लोकप्रियता चिंता का कारण बन सकती है."
नेपाल में जो भी मार्च 2026 के चुनावों में विजयी होगा अंतरिम सरकार उसे सत्ता सौंप देगी.
डॉक्टर रूमेला सेन का मानना है कि सुशीला कार्की का सबसे महत्वपूर्ण काम छह महीने में शांतिपूर्ण चुनाव करवाना होगा.
वो कहती हैं, "कई लोगों से मेरी बात हुई है और उनका सवाल था कि आने वाले छह महीने में क्या नया हो जाएगा? क्या वही पुराने राजनीतिक नेता वापस नहीं आ जाएंगे?"
"इस संदर्भ में मुझे लगता है कि सुशीला कार्की की सरकार ने देश में लोकतंत्र के भविष्य को सुरक्षित रखने और ख़ुद के बचाव के लिए अक्लमंदी का कदम उठाया है. नेपाल इस बदलाव का फ़ायदा उठा पाएगा या नहीं, यह समय ही बताएगा."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां कर सकते हैं. आप हमें एक्स, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
- नेपाल में सरकार के ख़िलाफ़ युवा सड़कों पर, बांग्लादेश और श्रीलंका में भी हुआ था ऐसा
- नेपाल में कम्युनिस्ट राज है या ब्राह्मण राज?
- लिपुलेख पर भारत और नेपाल फिर आमने-सामने, चीन के साथ क़रार बना नाराज़गी की वजह?
You may also like

मैं जी नहीं सकता हूं, अब मेरा चले जाना ही अच्छा है... प्रेमी संग भागी पत्नी तो सदमे में पति ने की खुदकुशी

ग्वालियर मेडिकल कॉलेज को विश्वस्तरीय स्वरूप देने की तैयारी, डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल ने दिए निर्देश

Health Tips : नमक कम करने के बाद भी ब्लड प्रेशर बढ़ रहा है, जानिए क्या है कारण

Health Tips : सेहत और फिटनेस के लिए मखाना है सुपरफूड, जानें सही सेवन तरीका

एक नई सुबह, एक नया शहर: उत्तर प्रदेश में बसने जा रहा है 'ग्रेटर गाज़ियाबाद'





