भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. गुरुवार को दोनों देशों ने एक-दूसरे पर कार्रवाई का दावा किया.
गुरुवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में दिल्ली में सर्वदलीय बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि 'ऑपरेशन सिंदूर ऑनगोइंग ऑपरेशन है.'
इसके बाद गुरुवार रात को भारत ने कहा है कि जम्मू, पठानकोट और उधमपुर के मिलिट्री स्टेशन पर पाकिस्तान ने हमला किया है, जिसे बेअसर कर दिया गया. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने हमले की बात से इनकार किया है.
कि "विश्वसनीय जानकारी के अनुसार लाहौर में एक एयर डिफ़ेंस सिस्टम को नष्ट कर दिया गया है."
पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने भारत के 25 ड्रोन्स मार गिराए हैं. बीबीसी इन दावों की पुष्टि नहीं करता है.
इस तनाव पर दोनों देशों के पड़ोसियों का क्या रुख़ हो सकता है, यह जानने के लिए बीबीसी ने कुछ विशेषज्ञों से बातचीत की.
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मिडिल ईस्ट इनसाइट्स प्लेटफ़ॉर्म की संस्थापक डॉक्टर शुभदा चौधरी कहती हैं, "अगर आप देखें तो भारत और पाकिस्तान के पड़ोसी देशों में सामाजिक-आर्थिक रूप से निचले तबके के लोग ज़्यादा हैं. भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष लंबे समय तक चलता है तो जिन लोगों पर इसका आर्थिक असर ज़्यादा होगा, उनकी संख्या बहुत बड़ी है."
शुभदा चौधरी ने बताया कि इन सभी देशों की अर्थव्यवस्था कोविड महामारी के बाद से संघर्ष ही कर रही है, इसलिए ऐसे देशों के लिए आर्थिक हित ज़्यादा महत्वपूर्ण है.
उन्हें लगता है कि भारत और पाकिस्तान के पड़ोसी इस कोशिश में लगे हैं कि यह तनाव जल्द ख़त्म हो.
छोटी अर्थव्यवस्था वाले पड़ोसी देशअफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार और भूटान जैसे पड़ोसी देशों के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव कई मायनों में काफ़ी अहम है.
शुभदा चौधरी कहती हैं, "अगर भारत और पाकिस्तान में संघर्ष काफ़ी समय तक खिंचता है तो अलग-अलग पड़ोसियों पर इसका अलग-अलग असर होगा. नेपाल से बात शुरू करें तो नेपाल का भारत के साथ 60 फ़ीसदी ट्रे़ड होता है, वो प्रभावित हो सकता है. पोर्ट और ट्रेड रूट के मामले में नेपाल को परेशानी हो सकती है. नेपाल और भारत के बीच लंबी सीमा है और नेपाल चाहेगा कि यह तनाव कम हो, जबकि चीन इस स्थिति का फ़ायदा नेपाल के साथ संबंध को आगे बढ़ाने में कर सकता है."
उनके मुताबिक ऐसा ही आर्थिक संकट भूटान के साथ हो सकता है क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा तो वहाँ का पर्यटन उद्योग भी प्रभावित होगा.
दक्षिण एशिया की भू-राजनीति के जानकार और साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर धनंजय त्रिपाठी मानते हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव पर अफ़ग़ानिस्तान को छोड़कर बाक़ी देश तटस्थ रहेंगे.
उनका मानना है कि अन्य सभी पड़ोसी देश इस मामले में ख़ामोश ही रहेंगे.
धनंजय त्रिपाठी का कहना है, "भारत इस क्षेत्र में एक बड़ी अर्थव्यवस्था है और छोटे पड़ोसी देश भारत के साथ कई तरह की आर्थिक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं. श्रीलंका और नेपाल जैसे देशों के लिए पर्यटन से होने वाली कमाई काफ़ी अहम है और वो चाहेंगे कि यह तनाव जल्द ख़त्म हो."
भारत और श्रीलंका के बीच फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट है और श्रीलंका के हालिया आर्थिक संकट के दौर में भारत ने उसकी काफ़ी मदद की है. हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने श्रीलंका यात्रा भी की थी.
धनंजय त्रिपाठी मानते हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने से ये देश चाहेंगे कि दोनों ही देश बातचीत के ज़रिए इसका जल्द समाधान करें.
विदेश मामलों के जानकार क़मर आगा भी इस बात से सहमत दिखते हैं. उनका कहना है कि पड़ोसी देशों के साथ भारत का व्यवसायिक संबंध है.
क़मर आगा कहते हैं, "अगर संघर्ष बढ़ता है तो यह अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा. क्योंकि युद्ध के दौरान रक्षा ख़र्च बढ़ जाता है और इसमें रोज़गार नहीं मिलता है. ऐसे में बांग्लादेश को बड़ा नुक़सान हो सकता है क्योंकि बांग्लादेश की मौजूदा सरकार पाकिस्तान के क़रीब जा रही है. जबकि भारत का बड़ा निवेश बांग्लादेश में है."
हालांकि भारत और बांग्लादेश के बीच पहले संबंध काफ़ी अच्छे रहे हैं लेकिन पिछले साल बांग्लादेश में हुए आंदोलन की वजह से उस वक़्त की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को अपना पद छोड़ना पड़ा था.
उसके बाद से बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में जो अंतरिम सरकार बनी है उसके कई मुद्दों पर भारत से मदभेद रहे हैं.
क़मर आगा मानते हैं कि चीन ने भी कई देशों में निवेश किया, लेकिन ऐसा देखा गया है कि चीन के निवेश से उसे ज़्यादा फ़ायदा होता है, इसलिए मालदीव और श्रीलंका जैसे देश दोबारा भारत के क़रीब आए हैं.

भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के बीच चीन के रुख़ पर कई लोगों की नज़र है. चीन के पाकिस्तान से क़रीबी संबंध रहे हैं और भारत के साथ भी उसके कारोबारी हित जुड़े हुए हैं.
जबकि चीन ख़ुद मौजूदा समय में अमेरिका के साथ टैरिफ़ वॉर में उलझा हुआ है, इससे चीन की ख़ुद की अर्थव्यवस्था पर भी संकट देखे जा रहे हैं.
चीनी विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में भारत के हवाई हमले को 'अफ़सोसजनक' कहा है. बुधवार को हुए इस हमले को भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' नाम दिया है.
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि वे मौजूदा हालात को लेकर 'चिंतित' हैं.
चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया, "भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के पड़ोसी हैं और हमेशा रहेंगे. वे दोनों चीन के पड़ोसी भी हैं. चीन सभी तरह के आतंकवाद का विरोध करता है."
मंत्रालय के प्रवक्ता ने दोनों देशों से "शांत रहने, संयम बरतने और ऐसी कार्रवाइयों से बचने की अपील की है, जो स्थिति को और जटिल बना सकती है."
विशेषज्ञों को लगता है कि चीन कभी भी यह नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान अस्थिर हो, जिससे उसके करोड़ों का निवेश बेकार हो जाए.
पाकिस्तान में चीन ने का निवेश किया है.
इसके अलावा चीन, पाकिस्तान में चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपेक) और बेल्ट एंड रोड के तहत एक बड़ा निवेश कर रहा है.
हालांकि विदेश मामलों के जानकार क़मर आगा कहते हैं, "चीन चाहता है कि यह संघर्ष चलता रहे, यही उसके लिए अच्छा है. चीन के कुछ हालिया बयान भी यही दिखाते हैं. संघर्ष की हालत में चीन को अपने हथियार पाकिस्तान को बेचने का मौक़ा मिलेगा."
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले के बाद ने एक बयान में इस हमले की निंदा की और कहा कि ऐसी घटना क्षेत्र की सुरक्षा और स्थायित्व को नुक़सान पहुंचाते हैं.
भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' और पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव पर भी ने बयान जारी किया और इस तनाव पर चिंता जाहिर की और भारत -पाकिस्तान से इस तनाव को बातचीत के ज़रिए ख़त्म करने की अपील की.
हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच ख़ुद सीमा विवाद चल रहा है.
क़मर आगा कहते हैं, "अफ़ग़ानिस्तान की किसी सरकार ने पाकिस्तान के साथ अपनी सरहद यानी डूरंड रेखा को कभी माना ही नहीं है इसलिए पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच बहुत पुराना सीमा विवाद है. अगर भारत-पाकिस्तान संघर्ष बढ़ता है तो अफ़ग़ानिस्तान भारत के साथ खड़ा दिखेगा."
"यह विवाद भारत में अंग्रेज़ी राज से दौर से चल रहा है, जब दूसरा आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध हुआ था और डूरंड रेखा को दोनों देशों की सीमा निर्धारित की गई थी."
साल 1893 में अफ़ग़ान राजा और ब्रिटिश शासित भारत के विदेश मंत्री सर मोर्टिमर डूरंड के बीच हुए समझौते के बाद अफ़ग़ानिस्तान का कुछ हिस्सा ब्रिटिश इंडिया को दे दिया गया था.
साल 1947 में पाकिस्तान के जन्म के बाद कई अफ़ग़ान शासकों ने डूरंड समझौते की वैधता पर ही सवाल उठाए और दोनों देशों के बीच दुश्मनी के बीज पड़ गए.
रक्षा विशेषज्ञ संजीव श्रीवास्तव कहते हैं, "दक्षिण एशिया के ज़्यादातर देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध रहे हैं और अगर यह संघर्ष बढ़ता है तो इन देशों की चिंता बढ़ेगी. "
भारत-पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के बीच ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची ने इसी हफ़्ते पाकिस्तान और भारत की यात्रा की है. ईरान ने पहलगाम हमले की निंदा की और उसने की पेशकश भी की.
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फ़ोन करके पहलगाम हमले की निंदा की और भारत के साथ तनाव पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ से भी बातचीत की.
ईरान और पाकिस्तान एक-दूसरे के पड़ोसी देश हैं और दोनों देशों के बीच लंबी सीमा है.
क़मर आगा कहते हैं, "ईरान भारत-पाकिस्तान संघर्ष को जल्द से ख़त्म होते देखना चाहेगा, क्योंकि अगर इस क्षेत्र में संघर्ष बढ़ता है तो पाकिस्तान से सीमा साझा करने की वजह से ईरान पर भी असर पड़ सकता है."
वहीं भारत और ईरान के बीच ऐतिहासिक, रणनीतिक और आर्थिक कारणों से व्यापार संबंध मज़बूत रहे हैं.
साल 2022-23 में भारत और ईरान के बीच क़रीब 2.5 अरब डॉलर का कारोबार हुआ. भारत ने ईरान को 1.9 अरब डॉलर का निर्यात किया जबकि ईरान ने भारत को 60 करोड़ डॉलर का निर्यात किया.
भारत, ईरान के शीर्ष पांच कारोबारी सहयोगी देशों में शामिल है. भारत हर साल ईरान को क़रीब एक अरब डॉलर का चावल भेजता है.
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से भारत के लिए ईरान का तेल निर्यात प्रभावित हुआ है. 2019 से पहले तक भारत अपनी दस प्रतिशत तेल ज़रूरतें ईरान के तेल से पूरा करता था.
इसके अलावा भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह में क़रीब 50 करोड़ डॉलर का निवेश किया है. भारत चाबहार बंदरगाह के ज़रिए अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया के बाज़ारों तक पहुंच बनाना चाहता है.
रक्षा विशेषज्ञ संजीव श्रीवास्तव कहते हैं, "ईरान के दोनों ही देशों के साथ संबंध है और वह हर हाल में चाहेगा कि यह संघर्ष जल्द ख़त्म हो और शांति स्थापित करने का उसका प्रयास जारी रहेगा. "
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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