इंटरनेट और सोशल मीडिया के प्रभावों पर अक्सर चर्चा होती है, जिसमें यह बताया जाता है कि ये कैसे लोगों के सामाजिक जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। हालांकि, हर चीज के दो पहलू होते हैं। सोशल मीडिया न केवल दूरी पैदा करता है, बल्कि यह कई महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उजागर करता है। हाल ही में, एक 76 वर्षीय व्यक्ति की कहानी सामने आई, जो पिछले 40 वर्षों से दिल्ली की सड़कों पर जीवन यापन कर रहा था।
आप सोच सकते हैं कि हमारे देश में सड़कों पर रहने वाले लोगों की कमी नहीं है, लेकिन राजा सिंह की कहानी कुछ खास है। राजा सिंह ने कभी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी, लेकिन किस्मत ने उन्हें सड़क पर जीवन बिताने पर मजबूर कर दिया। उनकी कहानी तब सामने आई जब किसी ने उनकी स्थिति पर ध्यान दिया और उनसे बात की।

दिल्ली के अविनाश सिंह ने राजा सिंह की कहानी को अपने फेसबुक पर साझा किया। राजा सिंह कई वर्षों से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर जीवन यापन कर रहे थे। उन्होंने 1960 में अपने भाई के कहने पर भारत आने का निर्णय लिया और मुंबई में मोटर के पुर्जों का व्यवसाय शुरू किया। लेकिन, भाई की मृत्यु के बाद उनका व्यवसाय ठप हो गया और उनके दोनों बेटे भी उन्हें घर से निकाल दिए।
राजा सिंह ने भीख मांगने से इनकार किया और दिल्ली में वीजा ऑफिस के बाहर लोगों की मदद करना शुरू किया। उन्होंने बताया, 'मैं लोगों के फॉर्म भरने में मदद करता हूं, जिसके बदले में मुझे 100 रुपये तक मिल जाते हैं।' जब उनके पास काम नहीं होता, तो वे लंगर में खाना खा लेते हैं।
राजा सिंह की कहानी को 21 अप्रैल को फेसबुक पर साझा किया गया था, जिसमें लोगों से उनकी मदद करने की अपील की गई थी। यह पोस्ट तेजी से वायरल हो गई और कई लोग उनकी मदद के लिए आगे आए। अब राजा सिंह एक वृद्धाश्रम में रह रहे हैं और लोग उन्हें एक ऑक्सफोर्ड ग्रेजुएट के रूप में पहचानने लगे हैं।
You may also like
Box Office: Sunny Deol को पछाड़ Anil Kapoor बने बॉक्स ऑफिस के असली खिलाड़ी, जल्द आएंगी ये 6 धमाकेदार फिल्में!
'हर वर्दी के पीछे एक मां होती है, जो सोई नहीं होती', आलिया भट्ट ने शेयर किया पोस्ट
ऋषभ शेट्टी बनेंगे बजरंगबली, 'जय हनुमान' का हिस्सा बने भूषण कुमार
यूपी : सीएम योगी का निर्देश, प्राणी उद्यानों में बर्ड फ्लू से सुरक्षा के लिए उच्चतम सतर्कता बरती जाए
भारत-पाक तनाव में अमेरिका की जबरन दखल, क्रेडिट लूटने की होड़... आखिर ट्रंप क्यों बन रहे 'चौधरी'?