लखनऊ: केशव प्रसाद मौर्य और अखिलेश यादव कल पटना एयरपोर्ट पर दिखाई दिए थे। दोनों आपस में हंसते हुए, एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए थे। इसकी खूब चर्चा है। लेकिन दोनों राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। एक दूसरे पर वार करने का मौका नहीं छोड़ते। दोनों अभी तक एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप और कटाक्ष करते रहे हैं।
अखिलेश यादव और केशव प्रसाद मौर्य के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और कटाक्षों का इतिहास काफी गहरा और तीखा रहा है। दोनों नेताओं ने उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत की सियासत में एक-दूसरे को लगातार निशाना बनाया है, खासकर सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर उनके बीच जुबानी जंग चलती रहती है।
परस्पर आरोप-प्रत्यारोप और कटाक्ष
अखिलेश यादव ने कई मौकों पर केशव प्रसाद मौर्य पर सीधा निशाना साधते हुए कटाक्ष किए हैं, जिसका केशव मौर्य ने भी उसी तीखेपन से जवाब दिया है।
2022 के विधानसभा चुनाव के बाद, अखिलेश यादव ने केशव प्रसाद मौर्य पर तंज कसते हुए कहा था कि अगर वह भाजपा से 100 विधायक लेकर आ जाएं तो सपा उन्हें मुख्यमंत्री बनवा देगी। अखिलेश ने इसे 'मानसून ऑफर' कहा था, जो केशव मौर्य को भाजपा में कथित रूप से दरकिनार किए जाने के आरोपों के बीच एक बड़ा राजनीतिक हमला था।
'गवर्नमेंट सर्वेंट' और दिल्ली वाई-फाई का पासवर्ड
इसी साल मार्च में अखिलेश यादव ने महोबा में एक विवाह समारोह के दौरान पत्रकारों से बात करते हुए केशव प्रसाद मौर्य पर तंज कसा था। अखिलेश ने कहा, 'उन्होंने (केशव प्रसाद मौर्य) क्या सपना देखा था और क्या हासिल हुआ। अब वह गवर्मेंट सर्वेंट बनकर रह गए हैं।
भाजपा की अंदरूनी राजनीति पर कटाक्ष करते हुए, अखिलेश यादव ने एक बार केशव मौर्य को लेकर कहा था कि दिल्ली वाई-फाई का पासवर्ड केशव प्रसाद मौर्य हैं। यानी वह दिल्ली के इशारे पर काम कर रहे हैं।
मौर्य को स्टूल मंत्री बताया
अखिलेश यादव ने एक समय में केशव प्रसाद मौर्य को स्टूल मंत्री कहकर उनकी खूब खिंचाई की। इसके पीछे बीजेपी के एक कार्यक्रम की तस्वीर थी। इसमें सीएम योगी आदित्यनाथ और डॉ. दिनेश शर्मा के बीच केशव प्रसाद मौर्य बैठे हुए हैं। लेकिन तस्वीर की अनोखी बात यह थी कि मौर्य एक स्टूल पर बैठे हैं, जबकि बाकी दोनों कुर्सियों पर। इसे लेकर अखिलेश ने उन पर खूब कटाक्ष किए।
मौर्य का पलटवार
केशव प्रसाद मौर्य भी इन जवाबी हमलों का खुलकर जवाब देते हैं। वह अकसर कहते हैं कि अखिलेश यादव मजबूत पिछड़े नेताओं को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। उन्होंने अखिलेश के परिवार केंद्रित राजनीति पर हमला करते हुए कहा है कि सपा का 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) वास्तव में 'परिवार डेवलपमेंट एजेंसी' है और वह सिर्फ तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं। मौर्य ने कई बार कहा है कि वह अखिलेश के लिए हमेशा सम्मानजनक शब्दों का इस्तेमाल करेंगे, लेकिन यूपी की जनता उनके अपमान की राजनीति का मुंहतोड़ जवाब देगी। मौर्य अकसर समाजवादी पार्टी को समाप्तवादी पार्टी कहते हुए उसकी प्रासंगिकता पर ही सवाल उठाने लगते हैं।
विधानसभा में भी हुई तीखी बहस
इन दोनों नेताओं के बीच तकरार सदन के अंदर भी देखी गई है। मई 2022 में यूपी विधानसभा के बजट सत्र के दौरान, केशव प्रसाद मौर्य और अखिलेश यादव के बीच तीखी बहस हो गई थी। केशव मौर्य ने सपा सरकार के कार्यकाल में हुए कार्यों पर तंज कसा, जिस पर अखिलेश यादव भड़क गए थे। यह मामला इतना बढ़ा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हस्तक्षेप करके सदन के सदस्यों से मर्यादा बनाए रखने की अपील करनी पड़ी थी। इस विवाद ने सदन की कार्यवाही को बाधित किया था और दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर अभद्र भाषा का प्रयोग करने का आरोप लगाया था।
'सैफई की जमीन' पर तंज
सदन की बहस के दौरान केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव पर तंज कसते हुए कहा था कि सपा प्रमुख जिस एक्सप्रेस-वे और मेट्रो के निर्माण का श्रेय लेते हैं, ऐसा लगता है जैसे उन्होंने इसे 'सैफई की जमीन बेचकर' बनवाया हो। इस व्यक्तिगत हमले पर अखिलेश ने प्रतिक्रिया दी थी, जिसे भाजपा ने 'पिता के अपमान' से जोड़कर मुद्दा बनाया था।
इस राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के केंद्र में उत्तर प्रदेश का बड़ा ओबीसी वोट बैंक है। केशव प्रसाद मौर्य भाजपा में एक प्रमुख ओबीसी चेहरा हैं, खासकर गैर-यादव पिछड़ों के बीच। वहीं, अखिलेश यादव खुद को और अपनी पार्टी को 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
दोनों नेताओं के बीच होने वाले कटाक्ष और वार-पलटवार को ओबीसी समुदाय को अपने पक्ष में करने की कोशिश के तौर पर देखा जाता है। केशव मौर्य अखिलेश यादव को केवल यादव समुदाय के नेता के रूप में पेश करते हैं, जबकि खुद को समग्र पिछड़ों के नेता के रूप में स्थापित करने का प्रयास करते हैं। यह राजनीतिक तकरार इस बात का संकेत है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में सत्ता की लड़ाई अब सिर्फ नीतियों और विकास की नहीं, बल्कि व्यक्तिगत और सामाजिक पहचान के वर्चस्व की भी बन गई है।
अखिलेश यादव और केशव प्रसाद मौर्य के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और कटाक्षों का इतिहास काफी गहरा और तीखा रहा है। दोनों नेताओं ने उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत की सियासत में एक-दूसरे को लगातार निशाना बनाया है, खासकर सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर उनके बीच जुबानी जंग चलती रहती है।
परस्पर आरोप-प्रत्यारोप और कटाक्ष
अखिलेश यादव ने कई मौकों पर केशव प्रसाद मौर्य पर सीधा निशाना साधते हुए कटाक्ष किए हैं, जिसका केशव मौर्य ने भी उसी तीखेपन से जवाब दिया है।
2022 के विधानसभा चुनाव के बाद, अखिलेश यादव ने केशव प्रसाद मौर्य पर तंज कसते हुए कहा था कि अगर वह भाजपा से 100 विधायक लेकर आ जाएं तो सपा उन्हें मुख्यमंत्री बनवा देगी। अखिलेश ने इसे 'मानसून ऑफर' कहा था, जो केशव मौर्य को भाजपा में कथित रूप से दरकिनार किए जाने के आरोपों के बीच एक बड़ा राजनीतिक हमला था।
'गवर्नमेंट सर्वेंट' और दिल्ली वाई-फाई का पासवर्ड
इसी साल मार्च में अखिलेश यादव ने महोबा में एक विवाह समारोह के दौरान पत्रकारों से बात करते हुए केशव प्रसाद मौर्य पर तंज कसा था। अखिलेश ने कहा, 'उन्होंने (केशव प्रसाद मौर्य) क्या सपना देखा था और क्या हासिल हुआ। अब वह गवर्मेंट सर्वेंट बनकर रह गए हैं।
भाजपा की अंदरूनी राजनीति पर कटाक्ष करते हुए, अखिलेश यादव ने एक बार केशव मौर्य को लेकर कहा था कि दिल्ली वाई-फाई का पासवर्ड केशव प्रसाद मौर्य हैं। यानी वह दिल्ली के इशारे पर काम कर रहे हैं।
मौर्य को स्टूल मंत्री बताया
अखिलेश यादव ने एक समय में केशव प्रसाद मौर्य को स्टूल मंत्री कहकर उनकी खूब खिंचाई की। इसके पीछे बीजेपी के एक कार्यक्रम की तस्वीर थी। इसमें सीएम योगी आदित्यनाथ और डॉ. दिनेश शर्मा के बीच केशव प्रसाद मौर्य बैठे हुए हैं। लेकिन तस्वीर की अनोखी बात यह थी कि मौर्य एक स्टूल पर बैठे हैं, जबकि बाकी दोनों कुर्सियों पर। इसे लेकर अखिलेश ने उन पर खूब कटाक्ष किए।
मौर्य का पलटवार
केशव प्रसाद मौर्य भी इन जवाबी हमलों का खुलकर जवाब देते हैं। वह अकसर कहते हैं कि अखिलेश यादव मजबूत पिछड़े नेताओं को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। उन्होंने अखिलेश के परिवार केंद्रित राजनीति पर हमला करते हुए कहा है कि सपा का 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) वास्तव में 'परिवार डेवलपमेंट एजेंसी' है और वह सिर्फ तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं। मौर्य ने कई बार कहा है कि वह अखिलेश के लिए हमेशा सम्मानजनक शब्दों का इस्तेमाल करेंगे, लेकिन यूपी की जनता उनके अपमान की राजनीति का मुंहतोड़ जवाब देगी। मौर्य अकसर समाजवादी पार्टी को समाप्तवादी पार्टी कहते हुए उसकी प्रासंगिकता पर ही सवाल उठाने लगते हैं।
विधानसभा में भी हुई तीखी बहस
इन दोनों नेताओं के बीच तकरार सदन के अंदर भी देखी गई है। मई 2022 में यूपी विधानसभा के बजट सत्र के दौरान, केशव प्रसाद मौर्य और अखिलेश यादव के बीच तीखी बहस हो गई थी। केशव मौर्य ने सपा सरकार के कार्यकाल में हुए कार्यों पर तंज कसा, जिस पर अखिलेश यादव भड़क गए थे। यह मामला इतना बढ़ा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हस्तक्षेप करके सदन के सदस्यों से मर्यादा बनाए रखने की अपील करनी पड़ी थी। इस विवाद ने सदन की कार्यवाही को बाधित किया था और दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर अभद्र भाषा का प्रयोग करने का आरोप लगाया था।
'सैफई की जमीन' पर तंज
सदन की बहस के दौरान केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव पर तंज कसते हुए कहा था कि सपा प्रमुख जिस एक्सप्रेस-वे और मेट्रो के निर्माण का श्रेय लेते हैं, ऐसा लगता है जैसे उन्होंने इसे 'सैफई की जमीन बेचकर' बनवाया हो। इस व्यक्तिगत हमले पर अखिलेश ने प्रतिक्रिया दी थी, जिसे भाजपा ने 'पिता के अपमान' से जोड़कर मुद्दा बनाया था।
इस राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के केंद्र में उत्तर प्रदेश का बड़ा ओबीसी वोट बैंक है। केशव प्रसाद मौर्य भाजपा में एक प्रमुख ओबीसी चेहरा हैं, खासकर गैर-यादव पिछड़ों के बीच। वहीं, अखिलेश यादव खुद को और अपनी पार्टी को 'पीडीए' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
दोनों नेताओं के बीच होने वाले कटाक्ष और वार-पलटवार को ओबीसी समुदाय को अपने पक्ष में करने की कोशिश के तौर पर देखा जाता है। केशव मौर्य अखिलेश यादव को केवल यादव समुदाय के नेता के रूप में पेश करते हैं, जबकि खुद को समग्र पिछड़ों के नेता के रूप में स्थापित करने का प्रयास करते हैं। यह राजनीतिक तकरार इस बात का संकेत है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में सत्ता की लड़ाई अब सिर्फ नीतियों और विकास की नहीं, बल्कि व्यक्तिगत और सामाजिक पहचान के वर्चस्व की भी बन गई है।
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