नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या लोगों को भारत से निकालने पर रोक लगाने से शुक्रवार को इनकार कर दिया। याचिका में कहा गया था कि भारत सरकार ने 43 रोहिंग्या लोगों को जबरदस्ती म्यांमार भेज दिया। इनमें बच्चे, महिलाएं, बूढ़े और कैंसर जैसे गंभीर बीमारी वाले लोग शामिल थे। आरोप था कि सरकार ने इन लोगों को अंतरराष्ट्रीय जल सीमा में फेंक दिया है। याचिका में दिए गए सबूत कमजोरजस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की। जस्टिस कांत ने कहा कि तीन जजों की बेंच ने 8 मई को इसी तरह की एक याचिका पर रोक लगाने से मना कर दिया था। बेंच ने कहा कि याचिका में दिए गए सबूत कमजोर हैं। इसलिए, पिछली बेंच के फैसले को बदलने का कोई कारण नहीं है। बेंच ने कहा, "याचिका में जो बातें कही गई हैं, उनके समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं है। जब तक आरोपों को साबित करने के लिए कुछ सबूत नहीं दिए जाते, तब तक बड़ी बेंच के फैसले पर सवाल उठाना मुश्किल है।" बेंच ने याचिकाकर्ताओं की जल्द सुनवाई की मांग को भी ठुकरा दिया। अब इस मामले पर अगली सुनवाई 31 जुलाई, 2025 को होगी।लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक याचिकाकर्ता के वकील, सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंसाल्वेस ने कहा, "हमारे पास समय कम है। कृपया इसे अगले हफ्ते सुनें। UN की रिपोर्ट कहती है कि उन्हें पकड़ा गया और भेज दिया गया। कृपया उनकी मौत से पहले सुनवाई करें।" लेकिन बेंच ने उनकी बात नहीं मानी। जस्टिस कांत ने कहा, "हम UN की रिपोर्ट पर तीन जजों की बेंच में बैठकर ही टिप्पणी करेंगे।" बेंच ने पूछा-आपकी कहानी का आधार क्या हैजस्टिस कांत ने याचिका पर सवाल उठाते हुए कहा, "हर रोज आप एक नई कहानी लेकर आते हैं। इस कहानी का आधार क्या है? यह बहुत ही खूबसूरती से बनाई गई कहानी है! कृपया हमें रिकॉर्ड में मौजूद सबूत दिखाएं। आपके आरोपों को साबित करने के लिए क्या सबूत हैं?" मुश्किल समय में मनगढ़ंग कहानियां लेकर आते हैंगोंसाल्वेस ने कहा कि लोगों को अंडमान ले जाया गया और समुद्र में फेंक दिया गया। अब वे "युद्ध क्षेत्र" में हैं। जस्टिस कांत ने पूछा, "उन्हें कौन देख रहा है? किसने वीडियो बनाया? याचिकाकर्ता वापस कैसे आया? क्या वह वहां था?" गोंसाल्वेस ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को इस बारे में फोन पर जानकारी मिली। वे अभी भारत में ही हैं। जस्टिस कांत ने कहा, "जब देश मुश्किल दौर से गुजर रहा है, तो आप ऐसी मनगढ़ंत कहानियां लेकर आते हैं!"जस्टिस कांत ने फोन कॉल के दावों पर भी सवाल उठाए। गोंसाल्वेस ने कहा, "यह म्यांमार के तट से रिकॉर्डिंग है। सरकार चाहे तो इसकी जांच कर सकती है। यह हमारा रिश्तेदार था जिसे निर्वासित कर दिया गया।" जस्टिस कांत ने पूछा कि दिल्ली में बैठा याचिकाकर्ता कैसे यह साबित कर सकता है कि लोगों को अंडमान के तट से समुद्र में फेंका गया था। गोंसाल्वेस ने दोहराया कि याचिकाकर्ता को फोन कॉल आए थे। रोहिंग्या को निर्वासित करने पर रोक लगाने की मांगगोंसाल्वेस ने कोर्ट को बताया कि UN मानवाधिकार कार्यालय ने इस मामले पर ध्यान दिया है और जांच शुरू कर दी है। जस्टिस कांत ने कहा कि UN-OHCHR की रिपोर्ट को रिकॉर्ड में पेश करें। जस्टिस कांत ने कहा, "इन रिपोर्टों को रिकॉर्ड में रखें.. हम देखेंगे.. बाहर बैठे ये सभी लोग हमारी संप्रभुता को चुनौती नहीं दे सकते।"जब जस्टिस कांत ने कहा कि वह इस याचिका को रोहिंग्या से जुड़े लंबित मामलों के साथ जोड़ देंगे, तो गोंसाल्वेस ने रोहिंग्या को निर्वासित करने पर रोक लगाने की मांग की। उन्होंने NHRC बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य के फैसले का हवाला दिया। इस फैसले में कहा गया था कि गैर-नागरिकों को भी जीवन और स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है। इसमें चकमा लोगों को गैरकानूनी रूप से बेदखल करने से रोका गया था।जस्टिस कांत ने कहा कि उस मामले में, केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया था कि चकमा लोगों को भारतीय नागरिकता देने पर विचार किया जा रहा है। इसलिए कोर्ट ने राहत दी थी। जस्टिस कांत ने यह भी कहा कि इस बात पर "गंभीर विवाद" है कि रोहिंग्या शरणार्थी हैं या नहीं। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के फैसले का हवाला गोंसाल्वेस ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के फैसले का हवाला दिया। इस फैसले में कहा गया था कि रोहिंग्या म्यांमार में नरसंहार के खतरे का सामना कर रहे हैं। जस्टिस कांत ने पूछा कि 8 मई को मामलों को स्थगित करने के बाद याचिकाकर्ताओं को क्या "चौंकाने वाली जानकारी" मिली। गोंसाल्वेस ने बताया कि इस याचिका के बारे में जानकारी 8 मई को कोर्ट के आदेश के बाद मिली। जस्टिस कांत ने टिप्पणी की, "हर दिन आप सोशल मीडिया से कुछ न कुछ इकट्ठा करते रहते हैं..." गोंसाल्वेस ने इनकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता/उनके वकील रोहिंग्या समुदाय के सीधे संपर्क में हैं।उन्होंने पूछा, "हम शरणार्थियों के संपर्क में हैं. आज देश में 8000 लोगों के पास UNHCR कार्ड हैं. क्या दिल्ली में मौजूद 600 लोगों को युद्ध क्षेत्र में भेजा जाएगा?" जस्टिस कांत की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने 8 मई को कहा था कि अगर रोहिंग्या को भारत में रहने का अधिकार नहीं है, तो उन्हें कानून के अनुसार निर्वासित किया जाएगा। जज ने कहा, "अगर उन्हें यहां रहने का अधिकार है, तो इसे स्वीकार किया जाना चाहिए, और अगर उन्हें यहां रहने का अधिकार नहीं है, तो वे प्रक्रिया का पालन करेंगे और कानून के अनुसार निर्वासित करेंगे।"उस दिन, कोर्ट को बताया गया कि 7 मई को अधिकारियों ने कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों को "रातोंरात" निर्वासित कर दिया था. हालांकि, कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के बयान को देखते हुए हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. मेहता ने कहा था कि केंद्र सरकार कोर्ट के पहले के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य है. इस आदेश में विदेशियों को कानून के अनुसार निर्वासित करने की बात कही गई थी।
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'जब देश मुश्किल में है, तब आप मनगढ़ंत कहानियां लेकर आए हैं', सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ये सख्त टिप्पणी?
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