धर्म-कर्म को मानने वाले एक संत स्वभाव वाले सेठ जी के घर एक बार कोई कुत्ता घुसकर उनका घी खा गया। सेठ जी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि हमारी चीज कुत्ता कैसे खा गया। धार्मिक प्रवृत्ति वाले सेठ जी का मानना था कि सत्य की कमाई ऐसे व्यर्थ नहीं बर्बाद हो सकती। उन्होंने काफी सोच-विचार किया कि अवश्य ही कहीं न कहीं उनके घर में पराए व्यक्ति का धन आ गया है, किसी दूसरे का अधिकार मारने से उसके बराबर ही धन का नाश होता है, ऐसा उनका दृढ़ विश्वास था। वह काफी दिन सोच-विचार में उलझे हुए थे कि अकारण ही कुत्ता उनका घी नहीं खा सकता। उन्होंने अपने मुनीम से व्यापार का हिसाब-किताब दिखवाया, तो पता चला कि भूल से छ सौ रुपए किसी सज्जन के ज्यादा ले लिए गए थे, इतने ही मूल्य का घी कुत्ता खा गया। क्योंकि सेठ जी सत्य की कमाई पर दृढ़ निष्ठावान थे, उन्होंने भविष्य के लिए सभी कर्मचारियों को सावधान कर दिया कि कहीं गलती से भी पराया धन उनके पास न आ जाए।
कौन-सा धन हो जाता है नष्ट
जिस धन में किसी का अधिकार छीना गया हो, या जिसमें धोखा और अन्याय जुड़ा हो, वह धन कभी सुख नहीं देता। जीवन के अनेक उदाहरण इस बात के साक्षी हैं कि असत्य और अधर्म से अर्जित धन विनाश का कारण बन जाता है। कभी बीमारी, कभी दुर्घटना, तो कभी अपमान के रूप में वह धन व्यक्ति के पास टिक नहीं पाता। ईश्वर ने व्यवस्था ही ऐसी बनाई है कि धर्मयुक्त कमाई में ही स्थायित्व रहता है। जो व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चलता है, उसकी आय भले ही कम हो, पर वह शांत, सम्मानित और सुरक्षित जीवन जीता है। इसलिए कहते हैं, ‘सत्य मार्ग से अर्जित धन भले ही कम हो, पर वह सौ जन्मों तक साथ देता है, जबकि असत्य का धन क्षणिक सुख देकर सर्वनाश कर देता है।’
कौन-सा धन हो जाता है नष्ट
जिस धन में किसी का अधिकार छीना गया हो, या जिसमें धोखा और अन्याय जुड़ा हो, वह धन कभी सुख नहीं देता। जीवन के अनेक उदाहरण इस बात के साक्षी हैं कि असत्य और अधर्म से अर्जित धन विनाश का कारण बन जाता है। कभी बीमारी, कभी दुर्घटना, तो कभी अपमान के रूप में वह धन व्यक्ति के पास टिक नहीं पाता। ईश्वर ने व्यवस्था ही ऐसी बनाई है कि धर्मयुक्त कमाई में ही स्थायित्व रहता है। जो व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चलता है, उसकी आय भले ही कम हो, पर वह शांत, सम्मानित और सुरक्षित जीवन जीता है। इसलिए कहते हैं, ‘सत्य मार्ग से अर्जित धन भले ही कम हो, पर वह सौ जन्मों तक साथ देता है, जबकि असत्य का धन क्षणिक सुख देकर सर्वनाश कर देता है।’
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