अंक 9 पूर्णता का प्रतीक है, इसलिए देवी मंत्रों सहित सभी अन्य मंत्रों का जाप प्राचीन काल से कम से कम 108 बार करने की परंपरा रही है। 108 का योगफल 9 आता है, इस अंक के प्रभाव से साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
नवरात्र के नौ दिनों में नवदुर्गा की पूजा होती है, शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। इन देवियों की आराधना शक्ति, भक्ति, ज्ञान और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है। इसी प्रकार भारतीय ज्योतिष भी नौ ग्रहों पर आधारित है, सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु। इन ग्रहों की गति ही मानव जीवन की दशा और दिशा तय करती है।
संख्या 9 का महत्व धार्मिक, दार्शनिक और गणितीय दृष्टि से अद्वितीय है। भारतीय दर्शन के अनुसार ब्रह्माण्डीय समयचक्र तीन चरणों, सृष्टि, पालन और संहार में बँटा है और प्रत्येक चरण फिर तीन भागों में विभाजित है। इस प्रकार कुल नौ भाग सम्पूर्ण सृष्टि का प्रतिनिधित्व करते हैं, यही कारण है कि आदि शंकराचार्य ने 9 को ‘ब्रह्म’ कहा है।
मानव जीवन में भी यह अंक बार-बार दिखाई देता है। शरीर के नौ द्वार, आंखें, कान, नथुने, मुख, गुदा और जननांग, जीवन की गतिविधियों के केंद्र हैं। शिशु भी नौ माह के गर्भधारण के बाद जन्म लेता है। ऋग्वेद के 1017 सूक्तों का योग 9 है, 108 उपनिषदों और 18 पुराणों की संख्या का योग भी 9 आता है। महाभारत और गीता के 18 अध्याय भी इसी रहस्य से जुड़े हैं। गणित में 9 को ‘अविनाशी अंक’ कहा जाता है। किसी भी संख्या को 9 से गुणा करने पर अंततः उसके अंकों का योगफल 9 ही होता है। इसीलिए इसे शाष्वत और अपरिवर्तनीय माना गया है। अंक 8 परिवर्तनशील ‘माया’ का प्रतीक है, जबकि 9 ब्रह्म का प्रतीक।
ऋषि-मुनियों ने इस रहस्य को पहचानकर 108 दानों वाली माला से जप की परंपरा स्थापित की है। 27 नक्षत्र और उनके 4-4 चरण मिलकर भी 108 की संख्या बनाते हैं। ज्योतिष में बारह राशियों और नौ ग्रहों का गुणनफल भी 108 होता है। यह संयोग इस अंक की दिव्यता को और अधिक प्रकट करता है। नवरात्रि का पर्व हमें याद दिलाता है कि सृष्टि की हर गति और हर ऊर्जा कहीं न कहीं इस अद्भुत अंक 9 से जुड़ी है। यही कारण है कि भक्त नौ रातों तक शक्ति की साधना करके स्वयं को ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से जोड़ने का प्रयास करते हैं।
नवरात्र के नौ दिनों में नवदुर्गा की पूजा होती है, शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। इन देवियों की आराधना शक्ति, भक्ति, ज्ञान और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है। इसी प्रकार भारतीय ज्योतिष भी नौ ग्रहों पर आधारित है, सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु। इन ग्रहों की गति ही मानव जीवन की दशा और दिशा तय करती है।
संख्या 9 का महत्व धार्मिक, दार्शनिक और गणितीय दृष्टि से अद्वितीय है। भारतीय दर्शन के अनुसार ब्रह्माण्डीय समयचक्र तीन चरणों, सृष्टि, पालन और संहार में बँटा है और प्रत्येक चरण फिर तीन भागों में विभाजित है। इस प्रकार कुल नौ भाग सम्पूर्ण सृष्टि का प्रतिनिधित्व करते हैं, यही कारण है कि आदि शंकराचार्य ने 9 को ‘ब्रह्म’ कहा है।
मानव जीवन में भी यह अंक बार-बार दिखाई देता है। शरीर के नौ द्वार, आंखें, कान, नथुने, मुख, गुदा और जननांग, जीवन की गतिविधियों के केंद्र हैं। शिशु भी नौ माह के गर्भधारण के बाद जन्म लेता है। ऋग्वेद के 1017 सूक्तों का योग 9 है, 108 उपनिषदों और 18 पुराणों की संख्या का योग भी 9 आता है। महाभारत और गीता के 18 अध्याय भी इसी रहस्य से जुड़े हैं। गणित में 9 को ‘अविनाशी अंक’ कहा जाता है। किसी भी संख्या को 9 से गुणा करने पर अंततः उसके अंकों का योगफल 9 ही होता है। इसीलिए इसे शाष्वत और अपरिवर्तनीय माना गया है। अंक 8 परिवर्तनशील ‘माया’ का प्रतीक है, जबकि 9 ब्रह्म का प्रतीक।
ऋषि-मुनियों ने इस रहस्य को पहचानकर 108 दानों वाली माला से जप की परंपरा स्थापित की है। 27 नक्षत्र और उनके 4-4 चरण मिलकर भी 108 की संख्या बनाते हैं। ज्योतिष में बारह राशियों और नौ ग्रहों का गुणनफल भी 108 होता है। यह संयोग इस अंक की दिव्यता को और अधिक प्रकट करता है। नवरात्रि का पर्व हमें याद दिलाता है कि सृष्टि की हर गति और हर ऊर्जा कहीं न कहीं इस अद्भुत अंक 9 से जुड़ी है। यही कारण है कि भक्त नौ रातों तक शक्ति की साधना करके स्वयं को ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से जोड़ने का प्रयास करते हैं।
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