बेंगलुरु : कर्नाटक में आरएसएस की शाखा लगेगी या नहीं? यह अब कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले पर टिक गया है। बीते 18 अक्टूबर को राज्य की कांग्रेस सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर 10 से अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा दी थी। इस आदेश पर कर्नाटक हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। अगर अदालत सरकार के आदेश पर लगे स्टे को हटा देती है तो आरएसएस की शाखा नहीं लग पाएगी। जस्टिस एस जी पंडित और जस्टिस गीता के बी की डिविजन बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
सरकार के नियम से आरएसएस की शाखा पर लगा प्रतिबंध
अभी पूरे देश में आरएसएस अपनी स्थापना के 100 साल पूरे होने पर शताब्दी वर्ष समारोह का आयोजन किया जा रहा है। कर्नाटक के कई शहरों में पथ संचलन कार्यक्रम आयोजित हुए। इसके अलावा आरएसएस सार्वजनिक पार्क और मैदान में सुबह और शाम शाखा लगाता है, जिसमें संगठन के स्वयंसेवक एक जगह एकत्रित होते हैं। आरएसएस की शाखाओं में अमूमन 10 से अधिक लोग शामिल होते हैं। मंत्री प्रियांक खरगे की मांग पर कर्नाटक की सिद्धारमैया की कैबिनेट ने 16 अक्टूबर को एक नए नियम को मंजूरी दी थी। 18 अक्टूबर को राज्य सरकार ने सरकारी आदेश जारी कर सार्वजनिक स्थानों पर 10 से अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा दी। इस नए आदेश से कर्नाटक में लगने वाली आरएसएस की 4600 शाखाओं पर परोक्ष रूप से प्रतिबंधित किया गया।
मंगलवार को डबल बेंच ने की स्टे पर सुनवाई
सरकार के इस आदेश के खिलाफ 'पुनश्चेतन सेवा संस्था' ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। पिछले हफ्ते जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने सरकार के नए आदेश पर रोक लगा दी और आरएसएस की शाखा लगने का रास्ता साफ हो गया। राज्य सरकार ने सिंगल बेंच की ओर से लगाए गए स्टे के खिलाफ याचिका लगाई, जिस पर मंगलवार को सुन जस्टिस एस जी पंडित और जस्टिस गीता के बी की डिविजन बेंच ने सुनवाई की। सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल शशिकिरण शेट्टी और एनजीओ पुनश्चेतन सेवा संस्था की ओर से वरिष्ठ वकील अशोक हरनल्ली कोर्ट में दलीलें पेश की।
सरकार की दलील, रोक नहीं लगाई मगर अनुमति जरूरी
एडवोकेट जनरल शशिकिरण शेट्टी ने कोर्ट को बताया कि बेंगलुरु के क्यूबन पार्क जैसे स्थानों पर पहले से ही ऐसे प्रतिबंध लागू हैं। उन्होंने तर्क दिया कि यह आदेश बड़े जनहित में है और नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर 10 से अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई है, बल्कि इसके लिए अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया है। एडवोकेट अशोक हरनल्ली ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(बी) का हवाला देते हुए कहा कि यह नागरिकों को शांतिपूर्वक सार्वजनिक स्थानों पर इकट्ठा होने का अधिकार देता है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या क्रिकेट टीमों को हर दिन खेलने के लिए अनुमति लेनी होगी, जबकि टीम में 10 से ज्यादा खिलाड़ी होते हैं। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
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