शिमला: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 26 किलोमीटर बसे हलोग गांव में हर साल दिवाली के अगले दिन ‘पत्थर मेला’ आयोजित किया जाता है। हर साल की तरह इस बार भी दीवाली के अगले दिन इस अनोखी परंपरा का आयोजन किया गया। इस मेले में स्थानीय युवाओं की दो टोलियों ने एक-दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाए। इस मेले में पत्थर बरसाने की ये परपंरा सदियों से चली आ रही है। यह परंपरा धामी रियासत के राजपरिवार से जुड़ी मानी जाती है और इसे देवी मां भद्रकाली की पूजा के रूप में देखा जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले इस क्षेत्र में सुख-शांति के लिए नरबलि दी जाती थी, लेकिन बाद में एक रानी ने इस प्रथा को समाप्त कर खून से तिलक करने की परंपरा शुरू की। तभी से इस ‘पत्थर मेले’ का आयोजन किया जाता है, ताकि देवी को प्रसन्न कर क्षेत्र में खुशहाली बनी रहे।
इस बार रिटायर्ड पुलिस अधिकारी को लगा पत्थर
इस बार मेले में लगभग 26 मिनट तक पत्थरबाजी होती रही। इस दौरान एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी को पत्थर लगा। पत्थर लगने से उनके शरीर से खून बहने लगा। इसी खून से देवी मां का तिलक किया गया। स्थानीय मान्यता के अनुसार, जब तक किसी के शरीर से रक्त नहीं निकलता, तब तक पत्थरबाजी समाप्त नहीं होती। इसे शुभ संकेत और देवी को प्रसन्न करने का प्रतीक माना जाता है। पत्थर लगने वाले रिटाटर्ड पुलिस अधिकारी ने इसे अपना सौभाग्य बताया और कहा कि यह आस्था का विषय है। उन्होंने कहा कि आज तक किसी को इस मेले में गंभीर चोट नहीं आई, केवल उतना ही रक्त निकलता है जितना तिलक के लिए आवश्यक होता है।
कब बंद होती है पत्थरबाजी
बता दें कि इस मेले की शुरुआत से पहले राजदरबार में ग्राम देवता देव कुर्गुण और भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। इसके बाद सुरक्षा के प्रतीक के रूप में नरसिंह के पुजारी फूल लेकर आते हैं, जिन्हें लेकर राजपरिवार और ग्रामीण जुलूस की शक्ल में ‘शारड़ा’ नामक मुख्य स्थल तक पहुंचते हैं। यहीं से पत्थरबाजी की शुरुआत होती है। जैसे ही पत्थर लगने से किसी को चोट लग जाती है और खून निकलने लगता है तो पत्थरबाजी बंद कर दी जाती है।
इस बार रिटायर्ड पुलिस अधिकारी को लगा पत्थर
इस बार मेले में लगभग 26 मिनट तक पत्थरबाजी होती रही। इस दौरान एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी को पत्थर लगा। पत्थर लगने से उनके शरीर से खून बहने लगा। इसी खून से देवी मां का तिलक किया गया। स्थानीय मान्यता के अनुसार, जब तक किसी के शरीर से रक्त नहीं निकलता, तब तक पत्थरबाजी समाप्त नहीं होती। इसे शुभ संकेत और देवी को प्रसन्न करने का प्रतीक माना जाता है। पत्थर लगने वाले रिटाटर्ड पुलिस अधिकारी ने इसे अपना सौभाग्य बताया और कहा कि यह आस्था का विषय है। उन्होंने कहा कि आज तक किसी को इस मेले में गंभीर चोट नहीं आई, केवल उतना ही रक्त निकलता है जितना तिलक के लिए आवश्यक होता है।
कब बंद होती है पत्थरबाजी
बता दें कि इस मेले की शुरुआत से पहले राजदरबार में ग्राम देवता देव कुर्गुण और भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। इसके बाद सुरक्षा के प्रतीक के रूप में नरसिंह के पुजारी फूल लेकर आते हैं, जिन्हें लेकर राजपरिवार और ग्रामीण जुलूस की शक्ल में ‘शारड़ा’ नामक मुख्य स्थल तक पहुंचते हैं। यहीं से पत्थरबाजी की शुरुआत होती है। जैसे ही पत्थर लगने से किसी को चोट लग जाती है और खून निकलने लगता है तो पत्थरबाजी बंद कर दी जाती है।
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