इस्लामाबाद: पाकिस्तान जल्द ही गाजा पट्टी में कम से कम 20 हजार सैनिकों को भेजने जा रहा है। ऐसा वो गाजा में पश्चिमी देशों की निगरानी में शुरू होने वाले गाजा के स्थिरीकरण और पुनर्वास प्रयास कार्यक्रम के तहत करेगा। पाकिस्तान के इस फैसले के बाद देश के अंदर ही विवाद शुरू हो गये हैं। पाकिस्तान के कई पूर्व डिप्लोमेट और एक्सपर्ट ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने पाकिस्तान सेना के इस फैसले की आलोचना की है।
शीर्ष खुफिया सूत्रों के हवाले से सीएनएन-न्यूज18 की रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तानी सैनिकों की तैनाती इस महीने की शुरुआत में मिस्र में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर और इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद और अमेरिकी केंद्रीय खुफिया एजेंसी (CIA) के सीनियर अधिकारियों के बीच हुई कई गुप्त बैठकों के बाद हुई है। हैरानी की बात ये है ये वही पाकिस्तान है, जो इजरायल को बतौर देश मान्यता नहीं देता है, फिर भी असीम मुनीर मोसाद के अधिकारियों से मिले और मोसाद-सीआईए की निगरानी में पाकिस्तान की सेना गाजा में काम करेगी।
पाकिस्तान के पत्रकार मोइद पीरजादा ने इस मामले को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने लिखा है कि "तो आप कह रहे हैं कि सेना की "मुस्लिम पहचान" और "पाकिस्तानी राष्ट्रवाद" एक सोची-समझी चाल थी? और असली पहचान अंग्रेजों द्वारा बनाई गई "सेना इकाई" के इर्द-गिर्द गढ़ी गई थी? बलूच रेजिमेंट, एके, पंजाब वगैरह?" वहीं, पाकिस्तान की सीनियर जर्नलिस्ट आएशा सिद्धीकी ने भी अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है कि पाकिस्तान की सेना ने फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया था, हालांकि उन्होंने ये आंकड़ा सिर्फ 3000 का दिया है, जबकि असलियत में ये आंकड़ा 25 हजार के करीब है।
गाजा में फिर नरसंहार करेगा पाकिस्तान?
रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तानी सैनिकों को वैसे तो गाजा में लोगों के पुनर्वास कार्यक्रम के तहत भेजा जा रहा है, लेकिन उसकी जिम्मेदारी गाजा में हमास के बचे आतंकियों को मारने की होगी। पाकिस्तान को ये जिम्मेदारी इसलिए दी गई है, ताकि गाजा को पश्चिमी देशों के मुताबिक स्थिर किया जा सके। इस योजना में कथित तौर पर पाकिस्तान को इंडोनेशिया और अजरबैजान के साथ काम करना होगा, जिन्हें पश्चिमी और अरब मध्यस्थों के नेतृत्व वाले गाजा प्रशासन ढांचे में सीमित शांति स्थापना के लिए विचार किया जा रहा है। यानि, वो देश जो इस्लाम को आधार बनाकर हमास का समर्थन कर रहे थे, वो अब अमेरिका के इशारे पर हमास के लड़ाकों को मारने का काम करेंगे।
इस बीच पाकिस्तान के आर्मी चीफ असीम मुनीर ने जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला और ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष मेजर जनरल यूसुफ हुनेती के साथ अहम बातचीत की है। पेट्रा समाचार एजेंसी ने इस मुलाकात को लेकर बताया है कि रविवार को अम्मान में हुई बैठक में, अधिकारियों ने संबंधित क्षेत्रीय घटनाक्रमों पर भी चर्चा की। जॉर्डन, गाजा के करीब है और अगर पाकिस्तान अपने सैनिकों को गाजा भेजता है तो उसे जॉर्डन से भविष्य में मदद की जरूरत होगी। यानि अब यह साफ होने लगा है कि असीम मुनीर को डोनाल्ड ट्रंप ने बार बार वाइट हाउस क्यों बुलाया और अमेरिकी राष्ट्रपति, असीम मुनीर, पाकिस्तान और शहबाज शरीफ की क्यों बार बार तारीफ कर रहे हैं।
पाकिस्तान इजरायल को लेकर बदलेगा पासपोर्ट?
दावा ये भी किया जा रहा है कि पाकिस्तान ने अपने पासपोर्ट से 'इजरायल के लिए पासपोर्ट मान्य नहीं है', ये लाइन को भी हटाया जाएगा। आने वाले वक्त में जो पासपोर्ट छापे जाएंगे, उसमें ये लाइन नहीं होगी। जिसका मतलब है कि इजरायल को लेकर पाकिस्तान का रूख अब नरम हो गया है। सूत्रों ने न्यूज-18 को बताया है कि इजरायली मीडिया ने पहले ही पाकिस्तान की संभावित भागीदारी को "नाजुक लेकिन रणनीतिक रूप से उपयोगी" बताया है, हालांकि इससे क्षेत्रीय ताकतों में बेचैनी पैदा हो गई है।
सूत्रों ने जोर देकर न्यूज-18 से कहा है कि ईरान, तुर्की और कतर, गाजा में पाकिस्तान सैनिकों की किसी भी उपस्थिति का कड़ा विरोध करेंगे। वे इसे हमास-विरोधी और इजरायल-समर्थक चाल मानते हैं जो अमेरिका और इजरायल के मकसद को पूरा करने के लिए है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस तरह के कदम से अरब जगत के साथ पाकिस्तान के संबंध और बिगड़ सकते हैं।
फिलीस्तीन में कत्लेआम मचा चुका है पाकिस्तान
अब हम आपको बताते हैं कि कैसे पाकिस्तान की सेना ने फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया था। ये कहानी 1970 की है और इसे पाकिस्तानी सेना की क्रूरता के लिए जाना जाता है। दरअसल, जॉर्डन पर उस वक्त किंग हुसैन शासन कर रहे थे, जिनके खिलाफ फिलीस्तीनी लड़ाकों के विद्रोह कर दिया था। इन्हें इराक और सीरिया का समर्थन हासिल था। जिसके बाद पाकिस्तान सेना ने अपने ब्रिगेडियर जिया उल हक के नेतृत्व में ट्रेनिंग मिशन के बहाने भारी संख्या में सैनिकों को जॉर्डन भेजा। जॉर्डन पहुंचने के बाद पाकिस्तान की सेना ने युद्ध शुरू कर दिया और फिलीस्तीनियों पर भीषण हमले शुरू कर दिए। इसे इतिहास में 'ब्लैक सितंबर' के नाम से जाना जाता है।
पाकिस्तान की सेनाने जॉर्डन के साथ मिलकर सिर्फ 11 दिनों में हजारों फिलीस्तीनियों को मौत के घाट उतार दिया। अलग अलग अनुमानों में ये आंकड़ा 20-25 हजार के करीब है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, पाकिस्तान ने "शांतिपूर्वक एक पैदल सेना रेजिमेंट और एंटी-एयरक्राफ्ट यूनिट" जॉर्डन भेजी थी। जिया-उल-हक ने टैंकों और सैनिकों की कमान अपने हाथ में लेकर अमान की सड़कों पर फिलीस्तीनी शरणार्थियों और लड़ाकों का कत्लेआम मचा डाला। इससे जॉर्डन के तत्कालीन किंग किंग हुसैन की सत्ता बच गई थी।
फिलिस्तीनियों का कातिल है पाकिस्तान
इस घटना के बाद पूर्व इजरायली मंत्री मोशे दयान ने एक बार कहा था कि "सिर्फ 11 दिनों में पाकिस्तान ने हजारों लोगों को मार डाला। उन्होंने सिर्फ 11 दिनों में जितने फिलीस्तीनियों को मारा, इजरायल वैसा 20 सालों में नहीं कर पाया।" पाकिस्तानी पत्रकार शेख अजीज ने लिखा है कि "जिया उल हक को अपने देश में फिलिस्तीनियों के कातिल' कहा जाने लगा। इस घटना ने पाकिस्तान सेना के दोगलापन को दुनिया के सामने ला दिया, जिसमें वो विदेशी पैसों और गठबंधनों के लिए दूसरे देशों की जंग में उतरने से तनिक भी नहीं हिचकिचाता।
वहीं, पाकिस्तान के सीनेटर सीनेटर अल्लामा राजा नासिर ने पाकिस्तान सरकार के इस कदम का विरोध किया है। उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान की सेना ऐसा इजरायल की मदद के लिए कर रही है। लेकिन पाकिस्तान की सेना को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। जो सेना पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में लाखों लोगों को मार डाले, हजारों हजान महिलाओं से बलात्कार करे, भला उससे और क्या उम्मीद की जा सकती। वो पैसों के लिए अपने देश को भी बेच सकता है।
शीर्ष खुफिया सूत्रों के हवाले से सीएनएन-न्यूज18 की रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तानी सैनिकों की तैनाती इस महीने की शुरुआत में मिस्र में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर और इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद और अमेरिकी केंद्रीय खुफिया एजेंसी (CIA) के सीनियर अधिकारियों के बीच हुई कई गुप्त बैठकों के बाद हुई है। हैरानी की बात ये है ये वही पाकिस्तान है, जो इजरायल को बतौर देश मान्यता नहीं देता है, फिर भी असीम मुनीर मोसाद के अधिकारियों से मिले और मोसाद-सीआईए की निगरानी में पाकिस्तान की सेना गाजा में काम करेगी।
So you are saying that “Muslim identity” & “Pakistani Nationalism” of Army was a carefully constructed charade? And actual identity was built around “Army Unit” as by British? Baluch Regiment, AK, Punjab etc? @iamthedrifter https://t.co/PX5iHxFCvy
— Moeed Pirzada (@MoeedNj) October 27, 2025
पाकिस्तान के पत्रकार मोइद पीरजादा ने इस मामले को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने लिखा है कि "तो आप कह रहे हैं कि सेना की "मुस्लिम पहचान" और "पाकिस्तानी राष्ट्रवाद" एक सोची-समझी चाल थी? और असली पहचान अंग्रेजों द्वारा बनाई गई "सेना इकाई" के इर्द-गिर्द गढ़ी गई थी? बलूच रेजिमेंट, एके, पंजाब वगैरह?" वहीं, पाकिस्तान की सीनियर जर्नलिस्ट आएशा सिद्धीकी ने भी अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है कि पाकिस्तान की सेना ने फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया था, हालांकि उन्होंने ये आंकड़ा सिर्फ 3000 का दिया है, जबकि असलियत में ये आंकड़ा 25 हजार के करीब है।
गाजा में फिर नरसंहार करेगा पाकिस्तान?
रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तानी सैनिकों को वैसे तो गाजा में लोगों के पुनर्वास कार्यक्रम के तहत भेजा जा रहा है, लेकिन उसकी जिम्मेदारी गाजा में हमास के बचे आतंकियों को मारने की होगी। पाकिस्तान को ये जिम्मेदारी इसलिए दी गई है, ताकि गाजा को पश्चिमी देशों के मुताबिक स्थिर किया जा सके। इस योजना में कथित तौर पर पाकिस्तान को इंडोनेशिया और अजरबैजान के साथ काम करना होगा, जिन्हें पश्चिमी और अरब मध्यस्थों के नेतृत्व वाले गाजा प्रशासन ढांचे में सीमित शांति स्थापना के लिए विचार किया जा रहा है। यानि, वो देश जो इस्लाम को आधार बनाकर हमास का समर्थन कर रहे थे, वो अब अमेरिका के इशारे पर हमास के लड़ाकों को मारने का काम करेंगे।
इस बीच पाकिस्तान के आर्मी चीफ असीम मुनीर ने जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला और ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष मेजर जनरल यूसुफ हुनेती के साथ अहम बातचीत की है। पेट्रा समाचार एजेंसी ने इस मुलाकात को लेकर बताया है कि रविवार को अम्मान में हुई बैठक में, अधिकारियों ने संबंधित क्षेत्रीय घटनाक्रमों पर भी चर्चा की। जॉर्डन, गाजा के करीब है और अगर पाकिस्तान अपने सैनिकों को गाजा भेजता है तो उसे जॉर्डन से भविष्य में मदद की जरूरत होगी। यानि अब यह साफ होने लगा है कि असीम मुनीर को डोनाल्ड ट्रंप ने बार बार वाइट हाउस क्यों बुलाया और अमेरिकी राष्ट्रपति, असीम मुनीर, पाकिस्तान और शहबाज शरीफ की क्यों बार बार तारीफ कर रहे हैं।
पाकिस्तान इजरायल को लेकर बदलेगा पासपोर्ट?
दावा ये भी किया जा रहा है कि पाकिस्तान ने अपने पासपोर्ट से 'इजरायल के लिए पासपोर्ट मान्य नहीं है', ये लाइन को भी हटाया जाएगा। आने वाले वक्त में जो पासपोर्ट छापे जाएंगे, उसमें ये लाइन नहीं होगी। जिसका मतलब है कि इजरायल को लेकर पाकिस्तान का रूख अब नरम हो गया है। सूत्रों ने न्यूज-18 को बताया है कि इजरायली मीडिया ने पहले ही पाकिस्तान की संभावित भागीदारी को "नाजुक लेकिन रणनीतिक रूप से उपयोगी" बताया है, हालांकि इससे क्षेत्रीय ताकतों में बेचैनी पैदा हो गई है।
सूत्रों ने जोर देकर न्यूज-18 से कहा है कि ईरान, तुर्की और कतर, गाजा में पाकिस्तान सैनिकों की किसी भी उपस्थिति का कड़ा विरोध करेंगे। वे इसे हमास-विरोधी और इजरायल-समर्थक चाल मानते हैं जो अमेरिका और इजरायल के मकसद को पूरा करने के लिए है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस तरह के कदम से अरब जगत के साथ पाकिस्तान के संबंध और बिगड़ सकते हैं।
फिलीस्तीन में कत्लेआम मचा चुका है पाकिस्तान
अब हम आपको बताते हैं कि कैसे पाकिस्तान की सेना ने फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया था। ये कहानी 1970 की है और इसे पाकिस्तानी सेना की क्रूरता के लिए जाना जाता है। दरअसल, जॉर्डन पर उस वक्त किंग हुसैन शासन कर रहे थे, जिनके खिलाफ फिलीस्तीनी लड़ाकों के विद्रोह कर दिया था। इन्हें इराक और सीरिया का समर्थन हासिल था। जिसके बाद पाकिस्तान सेना ने अपने ब्रिगेडियर जिया उल हक के नेतृत्व में ट्रेनिंग मिशन के बहाने भारी संख्या में सैनिकों को जॉर्डन भेजा। जॉर्डन पहुंचने के बाद पाकिस्तान की सेना ने युद्ध शुरू कर दिया और फिलीस्तीनियों पर भीषण हमले शुरू कर दिए। इसे इतिहास में 'ब्लैक सितंबर' के नाम से जाना जाता है।
पाकिस्तान की सेनाने जॉर्डन के साथ मिलकर सिर्फ 11 दिनों में हजारों फिलीस्तीनियों को मौत के घाट उतार दिया। अलग अलग अनुमानों में ये आंकड़ा 20-25 हजार के करीब है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, पाकिस्तान ने "शांतिपूर्वक एक पैदल सेना रेजिमेंट और एंटी-एयरक्राफ्ट यूनिट" जॉर्डन भेजी थी। जिया-उल-हक ने टैंकों और सैनिकों की कमान अपने हाथ में लेकर अमान की सड़कों पर फिलीस्तीनी शरणार्थियों और लड़ाकों का कत्लेआम मचा डाला। इससे जॉर्डन के तत्कालीन किंग किंग हुसैन की सत्ता बच गई थी।
I express my deep concern and categorical opposition to the government’s reported plan to deploy Pakistani troops as part of the so-called International Stabilisation Force (ISF) for Gaza.
— Senator Allama Raja Nasir (@AllamaRajaNasir) October 28, 2025
This force, far from serving the cause of peace or justice, risks turning #Pakistan into an…
फिलिस्तीनियों का कातिल है पाकिस्तान
इस घटना के बाद पूर्व इजरायली मंत्री मोशे दयान ने एक बार कहा था कि "सिर्फ 11 दिनों में पाकिस्तान ने हजारों लोगों को मार डाला। उन्होंने सिर्फ 11 दिनों में जितने फिलीस्तीनियों को मारा, इजरायल वैसा 20 सालों में नहीं कर पाया।" पाकिस्तानी पत्रकार शेख अजीज ने लिखा है कि "जिया उल हक को अपने देश में फिलिस्तीनियों के कातिल' कहा जाने लगा। इस घटना ने पाकिस्तान सेना के दोगलापन को दुनिया के सामने ला दिया, जिसमें वो विदेशी पैसों और गठबंधनों के लिए दूसरे देशों की जंग में उतरने से तनिक भी नहीं हिचकिचाता।
वहीं, पाकिस्तान के सीनेटर सीनेटर अल्लामा राजा नासिर ने पाकिस्तान सरकार के इस कदम का विरोध किया है। उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तान की सेना ऐसा इजरायल की मदद के लिए कर रही है। लेकिन पाकिस्तान की सेना को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। जो सेना पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में लाखों लोगों को मार डाले, हजारों हजान महिलाओं से बलात्कार करे, भला उससे और क्या उम्मीद की जा सकती। वो पैसों के लिए अपने देश को भी बेच सकता है।





