काबुल/इस्लामाबाद: तालिबान के सुप्रीम लीडर हिबतुल्लाह अख़ुंदज़ादा ने अफगानिस्तान के जल मंत्री अब्दुल लतीफ़ मंसूर से कुनार नदी पर तत्काल बांध बनाने को कहा है। इस आदेश का मकसद कुमार नदी के पानी को पाकिस्तान जाने से रोकना है। अब्दुल लतीफ़ मंसूर ने दावा किया है कि "अफगानों को अपने जल संसाधनों का प्रबंधन करने का अधिकार है।" कुनार नदी पाकिस्तान के चित्राल क्षेत्र से निकलने वाली 480 किलोमीटर लंबी नदी है, जो अफगानिस्तान के नंगहार और कुनार प्रांतों से होकर गुजरती है और वापस पाकिस्तान की सिंधु नदी में मिल जाती है। अफगानिस्तान से पाकिस्तान में बहने वाली काबुल और कुनार नदियां पाकिस्तान के लिए पानी का एक बड़ा स्रोत हैं।
तालिबान ने भारत की तर्ज पर ही पाकिस्तान का पानी रोकने का फैसला किया है। तालिबान ने भारत की तर्ज पर ही कहा है कि 'खून और नदी एक साथ नहीं बह सकते।' भारत ने भी पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि को सस्पेंड कर दिया था। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो टूक शब्दों में कहा था कि नदी और खून एक साथ नहीं बह सकते और तालिबान ने भी भारत के स्टैंड को ही अपनाया है।
अफगानिस्तान की पाकिस्तान स्ट्रैटजी क्या है?
न्यूज-18 से बात करते हुए तालिबान के शीर्ष सूत्रों ने कहा है कि "पाकिस्तान हमारे नागरिकों पर हमला करने के लिए हवाई शक्ति का इस्तेमाल कर रहा है और हम पानी को उसके आंतरिक मामलों में... पाकिस्तान के हस्तक्षेप के खिलाफ एकमात्र गैर-सैन्य हथियार के रूप में देखते हैं। दशकों से, ISI ने काबुल पर नियंत्रण के लिए ISIS गुटों को धन और हथियार दिए हैं। पानी को रोकने या मोड़ने से काबुल को पाकिस्तान के गहरे सरकारी हथकंडों का मुकाबला करने के लिए रणनीतिक हथियार मिलता है। अफगानिस्तान हेलमंद, काबुल, कुनार जैसी अपनी नदियों पर संप्रभुता का इस्तेमाल कर रहा है, जो अफगान पहाड़ों से निकलती हैं लेकिन पाकिस्तानी कृषि भूमि की सिंचाई करती हैं। कमाल खान और शहतूत जैसे बांध और जलाशय जल-आर्थिक स्वतंत्रता हासिल करने की एक व्यापक योजना का हिस्सा हैं।"
तालिबान के सूत्रों ने आगे कहा कि "हमारा एजेंडा साफ है। हम अफगान कृषि और बिजली के लिए पानी को पाकिस्तान में प्रवाहित होने से पहले सुरक्षित कर रहे हैं। पाकिस्तान द्वारा हाल ही में अफगान शरणार्थियों का बड़े पैमाने पर निर्वासन, तोरखम व्यापार मार्गों को बंद करना भी वजहे हैं। तालिबान से अलग हुए गुटों के माध्यम से पाकिस्तान के हस्तक्षेप ने काबुल को उकसाया है। पानी को रोकने को पाकिस्तान के आर्थिक और मानवीय दबाव का बदला माना जा रहा है।" उन्होंने कहा कि "यह हमारे लिए बड़ी चिंता की बात है कि इस्लामाबाद हमारे शरणार्थियों के साथ बुरा व्यवहार कर रहा है और राजनीतिक रियायतें पाने के लिए शरणार्थियों को वापस भेज रहा है।" न्यूज-18 ने सूत्रों के हवाले से ये भी कहा है कि ईरान और चीन, दोनों दक्षिणी पंजाब और बलूचिस्तान में पाकिस्तान के कृषि आधार को कमजोर करने के लिए नदियों पर अफगान नियंत्रण का चुपचाप समर्थन कर रहे हैं।
पाकिस्तान और तालिबान में चरम पर तनाव
पाकिस्तान और तालिबान के बीच यह लड़ाई तब शुरू हुई जब पाकिस्तान ने 9 अक्टूबर को काबुल में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के शिविरों को निशाना बनाकर सीमा पार हवाई हमले किए। पाकिस्तान का आरोप है कि टीटीपी के आतंकी अफगानिस्तान से हमला करते हैं, जबकि तालिबान आरोपों को खारिज करता है। हवाई हमले के जवाब में तालिबान ने पाकिस्तान सीमा पार घातक जवाबी हमला किया और 58 जवानो को मार डाला। 20 सुरक्षा चौकियां नष्ट कर दी। सऊदी अरब और कतर की मध्यस्थता के बाद रविवार को कुछ समय के लिए युद्ध विराम हुआ, लेकिन मंगलवार रात फिर से तनाव बढ़ गया है।
स्वतंत्र पत्रकार राजा मुनीब ने न्यूज-18 में लिखा है कि पाकिस्तान के सैन्य शासक जनरल जिया-उल-हक ने 1970 के दशक में अफगानिस्तान में रणनीतिक गहराई (स्ट्रैटजिक डेप्थ) के सिद्धांत की कल्पना की थी, वो अब पाकिस्तान के लिए स्ट्रैटजिक डेथ में तब्दील होता दिख रहा है। जिया-उल-हक का मकसद पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा को सुरक्षित करते हुए और भारत के खिलाफ उसका इस्तेमाल करना था। लेकिन चार दशक बाद, यह स्ट्रैटजी फेल होती दिख रही है। जिसे कभी मध्य एशिया में पाकिस्तान के बढ़ते भू-राजनीतिक विस्तार और भारत के विरुद्ध एक ढाल के रूप में देखा जाता था, वह अब पाकिस्तान के भीतर एक ऐसा घाव बन गया है जो घातक रूप से सड़ रहा है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान की परिकल्पित रणनीतिक गहराई बनने के बजाय, उसकी रणनीतिक मृत्यु में बदल गया है।
तालिबान ने भारत की तर्ज पर ही पाकिस्तान का पानी रोकने का फैसला किया है। तालिबान ने भारत की तर्ज पर ही कहा है कि 'खून और नदी एक साथ नहीं बह सकते।' भारत ने भी पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि को सस्पेंड कर दिया था। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो टूक शब्दों में कहा था कि नदी और खून एक साथ नहीं बह सकते और तालिबान ने भी भारत के स्टैंड को ही अपनाया है।
अफगानिस्तान की पाकिस्तान स्ट्रैटजी क्या है?
न्यूज-18 से बात करते हुए तालिबान के शीर्ष सूत्रों ने कहा है कि "पाकिस्तान हमारे नागरिकों पर हमला करने के लिए हवाई शक्ति का इस्तेमाल कर रहा है और हम पानी को उसके आंतरिक मामलों में... पाकिस्तान के हस्तक्षेप के खिलाफ एकमात्र गैर-सैन्य हथियार के रूप में देखते हैं। दशकों से, ISI ने काबुल पर नियंत्रण के लिए ISIS गुटों को धन और हथियार दिए हैं। पानी को रोकने या मोड़ने से काबुल को पाकिस्तान के गहरे सरकारी हथकंडों का मुकाबला करने के लिए रणनीतिक हथियार मिलता है। अफगानिस्तान हेलमंद, काबुल, कुनार जैसी अपनी नदियों पर संप्रभुता का इस्तेमाल कर रहा है, जो अफगान पहाड़ों से निकलती हैं लेकिन पाकिस्तानी कृषि भूमि की सिंचाई करती हैं। कमाल खान और शहतूत जैसे बांध और जलाशय जल-आर्थिक स्वतंत्रता हासिल करने की एक व्यापक योजना का हिस्सा हैं।"
तालिबान के सूत्रों ने आगे कहा कि "हमारा एजेंडा साफ है। हम अफगान कृषि और बिजली के लिए पानी को पाकिस्तान में प्रवाहित होने से पहले सुरक्षित कर रहे हैं। पाकिस्तान द्वारा हाल ही में अफगान शरणार्थियों का बड़े पैमाने पर निर्वासन, तोरखम व्यापार मार्गों को बंद करना भी वजहे हैं। तालिबान से अलग हुए गुटों के माध्यम से पाकिस्तान के हस्तक्षेप ने काबुल को उकसाया है। पानी को रोकने को पाकिस्तान के आर्थिक और मानवीय दबाव का बदला माना जा रहा है।" उन्होंने कहा कि "यह हमारे लिए बड़ी चिंता की बात है कि इस्लामाबाद हमारे शरणार्थियों के साथ बुरा व्यवहार कर रहा है और राजनीतिक रियायतें पाने के लिए शरणार्थियों को वापस भेज रहा है।" न्यूज-18 ने सूत्रों के हवाले से ये भी कहा है कि ईरान और चीन, दोनों दक्षिणी पंजाब और बलूचिस्तान में पाकिस्तान के कृषि आधार को कमजोर करने के लिए नदियों पर अफगान नियंत्रण का चुपचाप समर्थन कर रहे हैं।
पाकिस्तान और तालिबान में चरम पर तनाव
पाकिस्तान और तालिबान के बीच यह लड़ाई तब शुरू हुई जब पाकिस्तान ने 9 अक्टूबर को काबुल में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के शिविरों को निशाना बनाकर सीमा पार हवाई हमले किए। पाकिस्तान का आरोप है कि टीटीपी के आतंकी अफगानिस्तान से हमला करते हैं, जबकि तालिबान आरोपों को खारिज करता है। हवाई हमले के जवाब में तालिबान ने पाकिस्तान सीमा पार घातक जवाबी हमला किया और 58 जवानो को मार डाला। 20 सुरक्षा चौकियां नष्ट कर दी। सऊदी अरब और कतर की मध्यस्थता के बाद रविवार को कुछ समय के लिए युद्ध विराम हुआ, लेकिन मंगलवार रात फिर से तनाव बढ़ गया है।
स्वतंत्र पत्रकार राजा मुनीब ने न्यूज-18 में लिखा है कि पाकिस्तान के सैन्य शासक जनरल जिया-उल-हक ने 1970 के दशक में अफगानिस्तान में रणनीतिक गहराई (स्ट्रैटजिक डेप्थ) के सिद्धांत की कल्पना की थी, वो अब पाकिस्तान के लिए स्ट्रैटजिक डेथ में तब्दील होता दिख रहा है। जिया-उल-हक का मकसद पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा को सुरक्षित करते हुए और भारत के खिलाफ उसका इस्तेमाल करना था। लेकिन चार दशक बाद, यह स्ट्रैटजी फेल होती दिख रही है। जिसे कभी मध्य एशिया में पाकिस्तान के बढ़ते भू-राजनीतिक विस्तार और भारत के विरुद्ध एक ढाल के रूप में देखा जाता था, वह अब पाकिस्तान के भीतर एक ऐसा घाव बन गया है जो घातक रूप से सड़ रहा है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान की परिकल्पित रणनीतिक गहराई बनने के बजाय, उसकी रणनीतिक मृत्यु में बदल गया है।
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