News India live, Digital Desk: काशी विश्वनाथ मंदिर दुनिया भर में भगवान शिव के सबसे भव्य और प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। शिवपुराण के अनुसार द्वादश ज्योतिर्लिंगों में इसका स्थान नौवां है। अंक 9 को सनातन संस्कृति में अनंत का प्रतीक माना जाता है, और काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थित स्वयंभू शिवलिंग को भी आदि से अनंत तक की मान्यता प्राप्त है। लेकिन एक सवाल अक्सर लोगों के मन में उठता है— भगवान शिव को आखिर काशी का कोतवाल क्यों कहा जाता है?
काशी का अर्थ और भगवान शिव का स्थाई वास
शास्त्रों में वर्णित है कि ‘काश्यां हि काशते काशी’, जिसका अर्थ है प्रकाश का नगर। यह प्रकाश स्वयं भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग से प्रकाशित होता है। कहते हैं भगवान शिव जब कैलाश से भ्रमण करते हुए काशी पहुंचे, तो यहां की दिव्य छटा देखकर मंत्रमुग्ध हो गए। उस समय यह नगरी भगवान विष्णु की पुरी थी, जहां विष्णु भगवान ‘बिंदु माधव’ के रूप में विराजते थे। महादेव ने विष्णु से यह नगर अपने स्थाई वास के लिए मांग लिया, तभी से इसे शिव की नगरी कहा जाने लगा।
भगवान शिव क्यों कहलाते हैं काशी के कोतवाल?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव के क्रोध से जन्मे भैरव, जो उनके रक्त की बूंदों से उत्पन्न हुए, उन्हें काशी का वास्तविक कोतवाल माना गया है। काल भैरव भगवान शिव के आदेश पर पूरी काशी की रक्षा करते हैं। इन भैरव की जागरूकता ही काशी में शिव की ज्योति को निरंतर जागृत रखती है। यही वजह है कि भगवान शिव भी प्रतीकात्मक रूप से काशी के कोतवाल कहे जाने लगे।
काशी के घर-घर में शिव
काशी का हर कोना, घाट, गलियां, मंदिर और श्मशान— सब जगह भगवान शिव ही विराजमान हैं। यहां शिव औघड़दानी, अलख निरंजनी, भैरव समेत कई रूपों में उपस्थित हैं। स्वयंभू शिवलिंग इन सभी स्वरूपों को अपने भीतर समेटे हुए है, इसलिए इसे दिव्य ज्योतिर्लिंग माना गया है।
मोक्ष की नगरी काशी
काशी मोक्ष प्रदान करने वाली सात नगरियों में सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। यहां शिव के स्थाई वास की वजह से मृत्यु के बाद मोक्ष मिलना निश्चित माना जाता है। अन्य छह मोक्षदायिनी नगरियां हैं— अयोध्या, मथुरा, उज्जैन, हरिद्वार, द्वारका और कांचीपुरम। लेकिन काशी इन सबसे पुरानी है। पुरातात्विक प्रमाणों और ऋग्वेद के उल्लेखों से पता चलता है कि इसकी उम्र लगभग पांच हजार वर्ष से भी अधिक है।
पंचतत्व और शिव तत्व का रहस्य
भगवान शिव पंचमुखी रूप में पंच तत्वों— पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, और वायु के रचयिता हैं। इन पांच तत्वों से बने शरीर की नश्वरता का उल्लेख तुलसीदास ने रामायण के किष्किंधा कांड में किया है। आत्मा की इन तत्वों से मुक्ति ही मोक्ष है, जिसे प्रदान करने वाले भगवान शिव स्वयं हैं।
काशी में हैं सभी 12 ज्योतिर्लिंगों के प्रतीक
काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा नगर में द्वादश ज्योतिर्लिंगों के प्रतीक अलग-अलग स्थानों पर स्थापित हैं। यह पौराणिक परिकल्पना काशी को विशेष बनाती है, जहां एक ही शहर में सभी ज्योतिर्लिंगों के दर्शन संभव हैं।
काल भैरव की महत्ता
काल भैरव शिव के ही स्वरूप हैं, जिनके बिना काशी विश्वनाथ के दर्शन पूरे नहीं होते। इनकी आठ प्रमुख चौकियां— भीषण, संहार, उन्मत्त, क्रोधी, कपाल, असितंग, चंड और रौरव भैरव पूरे शहर में स्थापित हैं। यही भैरव शिव की नगरी की रक्षा करते हुए काशी को आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण रखते हैं।
इस तरह शिव का अनंत स्वरूप और भैरव की अद्भुत शक्ति के कारण ही काशी शिव की नगरी और मोक्षदायिनी पुरी के रूप में जानी जाती है।
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